Prayagraj News : चयन के सात साल बाद उम्मीदवार को मिली न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 7 सालों से न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति का इंतजार कर रहे उम्मीदवार की नियुक्ति का निर्देश देते हुए कहा कि राज्य के पास ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याची ने देश के हितों के खिलाफ काम किया है या किसी साजिश में शामिल रहा है या आईपीसी की धारा 124-ए के तहत कोई संज्ञेय अपराध किया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि याची के खिलाफ चलाए गए दोनों आपराधिक मुकदमों में उसे सम्मानपूर्वक बरी कर दिया गया था, जिस पर संभवतः विपक्षियों ने विचार नहीं किया। कोर्ट ने यह भी देखा कि याची की बेरोजगारी की स्थिति और रोजगार की तलाश के कारण उसे आरोपी मानना उचित नहीं है। किसी व्यक्ति की वित्तीय स्थिति के आधार पर उसके द्वारा गलत कार्य करने का संदेह करना बेतुका-सा लगता है। कोर्ट का मानना है कि अगर ऐसी परिस्थितियों संदेह के लिए वैध आधार बनाती हैं तो कई लोगों पर गलत तरीके से निशाना लगाया जा सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने विपक्षियों के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि याची का मूल्यांकन उसके पिता के पिछले कार्यों के आधार पर किया जाना चाहिए, जिन्हें रिश्वतखोरी के आरोपों के कारण 1990 में न्यायाधीश के पद से बर्खास्त कर दिया गया था।
कोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति के चरित्र का निर्धारण किसी अन्य व्यक्ति के कृत्य के आधार पर नहीं किया जा सकता। विपक्षी अधिकारियों द्वारा याची के पिता पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर भरोसा करते हुए याची को एक सम्मानजनक पद पर नियुक्त होने से वंचित करना अफसोसजनक है। अंत में कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए संबंधित अधिकारियों को 15 जनवरी 2025 तक याची को नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने प्रदीप कुमार को मौजूदा रिक्तियों के विरुद्ध नियुक्त करने का निर्देश देते हुए कहा कि भले ही उन्हें 2017 की रिक्ति के सापेक्ष चुना गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा नियमों के प्रावधानों के अनुसार ऐसी रिक्तियां बनी हुई हैं, जिस पर याची का चयन हो सकता है।
दरअसल याची पर वर्ष 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का गंभीर आरोप लगाया गया था। राज्य सरकार के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सैन्य खुफिया के संयुक्त अभियान में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2014 में उन्हें मुकदमे से बरी कर दिया गया, लेकिन वर्ष 2016 में यूपी उच्चतर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में अंतिम चयन के बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र देने से इनकार कर दिया गया।
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