Prayagraj News : बिना उचित शोध के दाखिल याचिका पर 75 हजार रुपए के जुर्माने को बरकरार रखा
प्रयागराज, अमृत विचार । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राजस्व, 2006 के तहत एक जनहित याचिका पर इसी न्यायालय की अन्य पीठ द्वारा द्वारा लगाए गए 75 हजार रुपए के जुर्माने को बरकरार रखते हुए कहा कि अधिकतर जनहित याचिकाएं सार्वजनिक हितों के लिए नहीं बल्कि पक्षकारों के प्रति प्रतिशोध की भावना से दाखिल की जा रही हैं, जो चिंताजनक है।
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि बिना उचित शोध या जांच के केवल अधूरे तथ्यों के आधार पर याचिका दाखिल करने की प्रथा अब बहुत बढ़ गई है, जिसमें बड़ी संख्या में दाखिल याचिकाएं सार्वजनिक हित की प्रकृति की नहीं होतीं बल्कि अनिवार्य रूप से विपक्षियों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से दाखिल की जाती हैं। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने आशीष कुमार की विशेष अपील खारिज करते हुए पारित किया और अन्य पीठ द्वारा लगाये गए 75 हजार के जुर्माने को भी बरकरार रखा।
दरअसल याची ने खुद को एक समाचार पत्र का संपादक बताते हुए जनता के हित के लिए काम करने का दावा किया था, लेकिन उसने जनहित याचिका दाखिल करने से पहले आदेश की स्थिति के बारे में कोई शोध या जांच नहीं की। उसने स्वयं भी स्वीकार किया कि उसे आदेश के बारे में जानकारी नहीं थी। उसकी ओर से जांच और शोध की स्पष्ट कमी थी। उसने अन्य पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ इस आधार पर विशेष अपील दाखिल की कि उसे स्थिति की जानकारी नहीं थी कि कोर्ट द्वारा आदेश को पहले ही रद्द कर दिया गया था। मामले के अनुसार अपीलकर्ता ने एक जनहित याचिका के माध्यम से उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता,2006 की धारा 382 के तहत तालाब पर अतिक्रमण हटाने के संबंध में पारित आदेश के क्रियान्वयन की मांग की। विपक्षी ने कोर्ट को बताया कि उक्त आदेश को हाईकोर्ट ने पहले ही एक अन्य याचिका में खारिज कर दिया है।
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