प्रयागराज : आपराधिक तथ्यों को छिपाकर प्राप्त अग्रिम जमानत को किया रद्द
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में एक पेशेवर अधिवक्ता को मिली अग्रिम जमानत रद्द करते हुए कहा कि अग्रिम जमानत के मामले में महत्वपूर्ण कारक आरोपी का आपराधिक इतिहास है, जिसका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में विपक्षी/अभियुक्त एक अधिवक्ता है, इस नाते अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करना उसकी पहली जिम्मेदारी बनती है।
दरअसल अभियुक्त ने पिछले दो मामलों के आपराधिक इतिहास के तथ्य को छिपाकर सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अग्रिम जमानत हासिल कर ली। हालांकि अभियुक्त के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उसने दोनों मामलों में अपने आपराधिक इतिहास के बारे में स्पष्ट रूप से बताया था, जिनमें क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई थी, इसलिए उसने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया। कोर्ट ने अग्रिम जमानत की निवारक प्रकृति को स्पष्ट करते हुए कहा कि अग्रिम जमानत में लगाए गए मानदंड और शर्तें आमतौर पर सख्त होती हैं।
जमानत के किसी भी दुरुपयोग को रोकने और अभियुक्त द्वारा सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों को प्रभावित करने या मुकदमे से बचने के लिए न्याय की प्रक्रिया में बाधा डालने जैसी दिक्कतों के समाधान के लिए आपराधिक आचरण वाले व्यक्ति को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। मालूम हो कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन कोतवाली, रामपुर में दर्ज मामले में अग्रिम जमानत को रद्द करने के लिए विनोद सिंह नामक व्यक्ति ने याचिका दाखिल की थी। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि अभियुक्त ने अपने आपराधिक इतिहास को छुपाया है, इसलिए अग्रिम जमानत के आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता है और उसके एक प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता होने से मामले की गंभीरता और अधिक बढ़ गई है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ ने विनोद सिंह द्वारा दाखिल जमानत रद्द करने की अर्जी को स्वीकार करते हुए पारित किया और सत्र न्यायाधीश, रामपुर द्वारा पारित जमानत आदेश रद्द कर दिया गया, साथ ही आरोपी को संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया गया है, जहां वह नियमित जमानत के लिए प्रार्थना कर सकता है।
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