हाईकोर्ट ने UP पुलिस को लगाई फटकार, बच्चे संग गर्भवती महिला को हिरासत में लेने को बताया ''शक्ति का दुरुपयोग''

हाईकोर्ट ने UP पुलिस को लगाई फटकार, बच्चे संग गर्भवती महिला को हिरासत में लेने को बताया ''शक्ति का दुरुपयोग''

लखनऊ। हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला और उसके दो वर्षीय बच्चे को अपहरण के एक मामले में बयान दर्ज करने के लिए 6 घंटे से अधिक समय तक “अवैध रूप से हिरासत में रखने” के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और इसे "शक्ति का दुरुपयोग" और "यातना" करार दिया है। यह मामला महिला के परिवार ने दर्ज कराया था। 

इस मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को मुकर्रर की गयी है। अदालत ने पुलिस को आठ माह की गर्भवती महिला को एक लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया तथा राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पुलिस को महिलाओं से संबंधित मामलों को अधिक सावधानी से संभालने के लिए दिशा-निर्देश जारी करे। 

महिला के परिवार ने आगरा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि अगस्त 2021 में परीक्षा देने जाते समय उसका अपहरण कर लिया गया था। प्राथमिकी दर्ज की गई लेकिन मामले की जांच में ज्यादा प्रगति नहीं हुई। महिला के पति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान, उनके वकील राघवेंद्र पी सिंह और मोहम्मद शेराज ने अपहरण के आरोप का खंडन करते हुए कहा कि उसकी शादी हो चुकी है और वह लखनऊ में अपने पति के साथ रह रही है। 

याचिकाकर्ता के वकीलों ने इलाहाबद हाईकोर्ट की लखनऊ खंड पीठ को बताया कि आगरा पुलिस के उपनिरीक्षक अनुराग कुमार ने आठ माह की गर्भवती महिला को उसके दो वर्षीय बच्चे के साथ अपहरण मामले में बयान दर्ज करने के लिए 29 नवंबर को लखनऊ में हिरासत में लिया था। 

उन्होंने दावा किया कि जांच अधिकारी न तो केस डायरी लाया था और न ही महिला को छह घंटे से अधिक समय तक लखनऊ के चिनहट थाने में हिरासत में रखने से पहले उसकी उम्र की जांच की। शुक्रवार को अपने फैसले में न्यायमूर्ति अताउरहमान मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने पीड़िता के अधिकारों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि "जांच अधिकारी प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों पर ध्यान देने में विफल रहे।" 

हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, "जिस तरह से पुलिस ने अपनी ड्यूटी की, वह कानून की प्रक्रिया के मुताबिक नहीं है और यह शक्ति का दुरुपयोग है।" पीठ ने यह भी आदेश दिया कि पीड़िता को तुरंत रिहा किया जाए और लखनऊ में उसके घर वापस ले जाया जाए और उसके वकील की मौजूदगी में उसके पति को सौंप दिया जाए। 

अदालत ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने और तीन महीने के भीतर अदालत को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि महिला गर्भावस्था के अंतिम चरण में है और उसके साथ उसका बच्चा भी है और उसे ऐसी परिस्थितियों में कभी भी पुलिस हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए था। पीठ ने राज्य से दस दिनों के भीतर एक हलफनामा मांगा जिसमें फैसले का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों की रूपरेखा हो। 

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