मथुरा: गीता के प्रकाण्ड विद्वान गीतानन्द महराज ने जनता को नर सेवा नारायण सेवा का दिया था संदेश

मथुरा: गीता के प्रकाण्ड विद्वान गीतानन्द महराज ने जनता को नर सेवा नारायण सेवा का दिया था संदेश

मथुरा। परम तपस्वी ब्रम्हलीन संत गीतानन्द महराज का तिरोभाव महोत्सव 24 नवंबर को देश के विभिन्न भागों के साथ साथ यहां गीता आश्रम वृन्दावन में भी मनाया जाएगा। इस महोत्सव में देश विदेश के धर्माचार्य, संत महात्मा, न्यायाधीश, शिक्षाविद एवं समाजसेवी भाग लेकर इस अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपनी भावांजलि देंगे। इस महान संत द्वारा स्थापित लगभग एक दर्जन आश्रमों में चल रहे सेवा कार्यों में नर सेवा नारायण सेवा की झलक मिलती है।

उन्होंने घट घट में भगवान के दर्शन किये थे। वे स्वप्नदृष्टा थे तथा उन्होंने लगभग तीन दशक से अधिक समय पहले ही सामाजिक संबंधों में आई विकृति को समझा था तथा गीता कुटीर तपोवन हरिद्वार में वृद्धाश्रम की न केवल स्थापना की थी बल्कि इन आश्रमों में रहनेवाले दम्पतियों को किसी प्रकार का अभाव न महसूस हो, इसके लिए घर से बेहतर व्यवस्था वहां के वृद्धाश्रम में की थी ।

आज वहां का वृद्धाश्रम दूसरे वृद्धाश्रमों के लिए नमूना बन गया है। उसके बाद वृद्धाश्रम स्थापित करने की श्रंखला आगे चली। वे गीता आश्रम वृन्दावन में भी वृद्धाश्रम की स्थापना करना चाहते थे किंतु उस समय जमीन न मिल पाने के कारण उनका सपना पूरा न हो पाया।

वृन्दावन की पावन धरती पर महाप्रभु बल्लभाचार्य ,चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, गोपाल भट्ट, जीव गोस्वामी, रूप गोस्वामी जैसे संतो ने यदि धर्म की घ्वजा फहराई और श्यामाश्याम की गूढ़ लीलाओं के रहस्य को जन जन तक पहुंचाया तो आनन्दमयी मां, देवरहा बाबा, श्रीपाद बाबा,स्वामी वामदेव महराज, नीम करौली महराज, स्वामी अखंण्डानन्द ने सनातन धर्म पर आए संकट से समाज को निकालकर उन्हें एक दिशा दी।

इस संत ने उक्त के साथ सनातन धर्म के प्रवाह में आ रही परेशानियों को समझा और उनके लिए नाना प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई । देशभक्ति तो इस तपस्वी संत की रग रग में बसी हुई थी इसीलिए कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने आश्रम की ओर से 11 लाख की थैली रक्षा कोष में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दी थी।

इससे प्रभावित होकर वाजपेयी ने कहा था कि यदि देश के सभी धर्माचार्य इस प्रकार का अनुसरण करें तो देश की बहुत सी समस्याओं का निराकरण चुटकियों में हो सकता है। अहंकार से कोसों दूर इस महान संत ने उस समय कहा था कि इसमें उनका कोई योगदान नही है यह तो उनके शिष्यों का पैसा है । उन्होंने तो केवल पोस्टमैन का काम किया है तथा उनके पैसे को रक्षाकोष में दिया है।वे शिक्षा और संस्कारों के महत्व को इतना अधिक समझते थे जितना कोई शिक्षाविद नही समझ सकता।

उनका कहना था कि शिक्षा मनुष्य को असुरत्व से देवत्व की ओर ले जाती है और अच्छे संस्कारों की पहली सीढ़ी शिक्षा ही है इसीलिये उन्होंने अपने आश्रमों में सस्कृत पाठशालाएं खोली तथा जहां पर ऐसी पाठशालाएं नही खुल सकीं वहां पर दूसरी संस्कृत पाठशालाओं में संस्कृत का अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों के लिए अपने आश्रम में रखकर निःशुल्क भोजन और वस्त्र आदि की व्यवस्था की।

गीता उन्हें कंठस्थ थी तथा उन्होंने ’’कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’’ को अपने जीवन में उतारा था। वे एक ऐसे संत थे जिन्होंने भगवत आराधना करने के लिए घर से निकले साधुओं की कठिनाइयों को समझा था तथा उनके लिए अन्नक्षेत्र की स्थापना की जहां उन्हें प्रतिदिन एक बार ससम्मान भोजन दिया जाता है ।

जाड़ा उनकी आराधना में बाधक न बने इसलिए ऊन्हे वर्ष में एक बार जाड़े के कपड़े पूरी आस्तीन की गर्म बनियाइन, विशेष प्रकार का पैजामा, श्वेटर, टोपा, कम्बल,लबादा , मोजा आदि निःशुल्क वितरित करने की व्यवस्था की भी शुरूवात गीता कपीर तटोवन हरिद्वार से हुई थी। उनके 20वें तिरोभाव के अवसर पर इस बार भी इन वस्त्रों का वितरण हर साल की तरह गीता आश्रम वृन्दावन में किया जाएगा।

वृन्दावन के गीता आश्रम में तो अन्न क्षेत्र करोना काल में भी चला तथा आश्रम के प्रमुख महामंडलेश्वर डाॅ़ स्वामी अवशेषानन्द महराज ने स्वयं की देखरेख में इसे सम्पन्न कराया। इस महान संत ने सदैव जन कल्याण के बारे में सोचर इसीलिए उन्होंने गो सेवा का आदर्श उपस्थिति किया। उनके हरिद्वार आश्रम में सैकड़ों गायों की गौशाला है जिसके दूध, दही मक्खन आदि का उपयोग आश्रम में आनेवाले भक्तों और अन्न क्षेत्र में आनेवाले साधुओं के निमित्त किया जाता है।

उनका कहना था कि चूंकि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास है इसलिए उसका पूजन और उसकी सेवा देवताओं की सेवा है । गोपालन करके इस सेवा से भगवत आराधना की जा सकती है। कुल मिलाकर उनका जीवन मानव सेवा के लिए समर्पित था इसीलिए ऐसे महान संत के लिए ही कहा गया है किसंत कबहुु नहि फल भषै, नदी न संचय नीर।परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर।।

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