मौत की आग: लखनऊ में अफरा-तफरी, 75 से ज्यादा अस्पतालों को बंद करने की नोटिस, झांसी में 10 शिशुओं की जान जाने से हलचल

मौत की आग: लखनऊ में अफरा-तफरी, 75 से ज्यादा अस्पतालों को बंद करने की नोटिस, झांसी में 10 शिशुओं की जान जाने से हलचल

अमृत विचार, लखनऊ: झांसी के जिला अस्पताल में लगी भीषण आग में दस नवजातों की मौत के बाद लखनऊ में अफरा-तरफरी मची है। सरकार की नाक के नीचे मानक के विपरीत बिना सुरक्षा इंतजाम के चल रहे अस्पतालों को बंद करने की नोटिस जारी कर दी गई है। फायर विभाग की ओर से ऐसे 75 से ज्यादा अपस्पतालों को बंद करने की नोटिस सीएमओ को भेजी गई है जिनमें कई साल से अग्नि सुरक्षा की व्यवस्था पुख्ता नहीं हो पायी। हैरानी की बात है कि बिना फायर एनओसी के संचालित होने वाले ऐसे अस्पतालों में प्रदेश के सबसे बड़े मेडिकल यूनिवर्सिटी केजीएमयू से लेकर संवेदनशील सरकारी महिला और शिशु अस्पताल शामिल हैं। 

मुख्य अग्निशमन अधिकारी (सीएफओ) मंगेश कुमार ने बताया कि लखनऊ में संचालित करीब दो सौ से ज्यादा अस्पताल अग्नि सुरक्षा के मानक को पूरा नहीं कर रहे हैं। निरीक्षण के दौरान हर साल इनमें कमियां पाई जा रही हैं। अस्पतालों से साल दर साल नोटिस दी जा रही लेकिन व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। केजीएमयू, पीजीआई, क्वीनमेरी, झलकारी बाई, सिविल, बलरामपुर, लोहिया सहित सभी प्रमुख अस्पतालों में हर साल एक न एक नये विभाग की बिल्डिंग बनती है, लेकिन आग से बचाव के मानक पूरा न होने की वजह से इन्हें एनओसी नहीं दी जाती है। निजी अस्पतालों की हालत और बदतर है। नेशनल बिल्डिंग कोड का मानक पूरा किए बिना ही भवन खड़ा कर दिया जा रहा और मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय से अनुमति लेकर मनमाने तरीके से अस्पताल का संचालक शुरू कर दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 75 से ज्यादा ऐसे अस्पताल हैं जिनकों दर्जनों बार नोटिस देने के बाद भी सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता नहीं हो पाई है। इन अस्पतालों को बंद करने के लिए सीएमओ को आखिरी नोटिस दी गई है। इसमें कहा गया है कि सभी अस्पतालों को लाइसेंस तत्काल निरस्त किया जाए।

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एनबीसी का मानक पूरा करने में दो गुना लागत
सन 2005 से नेशनल बिल्डिंग कोड की गाईड लाइन लागू होने के बाद अस्पताल खोलने में काफी जटिलता आ गई है। इसमें बिल्डिंग निर्माण की लागत के बराबर फायर सेफ्टी के उपकरण और सुरक्षा कर्मियों पर खर्च करना पड़ रहा है। फायर की एनओसी लेने के लिए एनबीसी के मानक पूरे करने पड़ेंगे। इसकी वजह से अस्पताल संचालक मानक पूरे होने का एक शपथ पत्र देकर सीएमओ कार्यालय से अनुमित ले रहे हैं। इनके शपथ पत्र का न तो कोई भौतिक सत्यापन कराया जा रहा है न ही उन्हें अग्नि सुरक्षा के इंतजाम करने के निर्देश दिए जा रहे हैं। ऐसी स्थित में आग लगने पर मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। सीएफओ ने बताया कि एनओसी न लेने वाले अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई तो दूर बिना स्वास्थ्य विभाग की अनुमति के उन्हें नोटिस भी नहीं दी जा सकती है। सीएफओ ने बताया कि शहर के सभी सरकारी अस्पतालों का कई बार निरीक्षण किया जा चुका है। वहां भी फायर सेफ्टी के मानक पूरे नहीं है। ज्यादातर बिल्डिंगों में निर्माण के समय के ही उपकरण लगे हैं जो मौजूदा समय में काम नहीं कर रहे हैं। इन अस्पतालों को नोटिस भी भेजा जा चुका है लेकिन स्वास्थ्य विभाग नोटिस का संज्ञान लेकर मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करा रहा है।

यह है एनबीसी के मानक
नेशनल बिल्डिंग कोड की गाइड लाइन के मुताबिक अस्पताल का निर्माण 12 मीटर से कम चौड़ी सड़क पर नहीं किया जा सकता है। फ्लोर रेसिओ एरिया (एफएआर) के हिसाब से अधिकतम उचाई 45 मीटर हो सकती है। कम से कम तीन मीटर चौड़ाई की सीढ़िया और इसी के आसपास लिफ्ट होना चाहिए। चार मीटर चौड़ा रैंप होगा और हर फ्लोर पर एंट्री और एक्जिट के तीन मीटर चौड़े अलग-अलग रास्ते होंगे। इसके अलावा पूरी इमारत स्प्रिंकलर सिस्टम से लैस होगी। हर तल पर कम से कम पांच हाइड्रेंट प्वाइंट होंगे। फ्लेम, स्मोक डिटेक्टर के साथ अलार्म सिस्टम का पैनल रुम होगा। फायर फाइटिंग के लिए कम से कम दो साल का प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारी रखे जाएंगे। नर्सिंगहोम के लिए 15 मीटर से ऊची बिल्डिंग बनाने की अनुमति गाइड लाइन में नहीं दी गई है। फायर सेफ्टी एक्ट में नर्सिंगहोम खुली जगह पर बनाया जा सकता है। एक कमरे में पांच से ज्यादा मरीज नहीं रखे जाएंगे। मरीजों का कमरा तीन मीटर के एक्जिट वाले रास्ते से अधिकतम दस मीटर दूर होगा।

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फायर सेफ्टी ऑडिट में मिली यह खामियां
केजीएमयू शताब्दी अस्पताल- केवल एंट्री गेट पर रैंप बना है। नई इमारत होने के बावजूद सीढ़िया ढाई मीटर से कम चौड़ी बनाई गईं। निकास के लिए बनाया गया गेट भी मानकके विपरीत है।
केजीएमयू की पुरानी बिल्डिंग- एक भी लिफ्ट सही नहीं है। एंट्री और एक्जिट गेट की चौड़ाई बहुत कम है। फायर फायटिंग सिस्टम इतना पुराना है कि अब कार्यशील नहीं है।
बलरामपुर अस्पताल- अलग-अलग विभागों के लिए बनी बिल्डिंगों में सेंट्रलाइज फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है। कई बिल्डिंग में फायर फाइटिंग सिस्टम ही नहीं लगा है।
सिविल अस्पताल- पुरानी ओपीडी बिल्डिंग में फायर फाइटिंग के एक भी उपकरण नहीं है। कुछ फायर इस्टिंग्यूशर लगे हैं जो कई साल से एक्सपासर पड़े हैं। इमेरजेंसी की नई बिल्डिंग के पीछे से निकास गेट मानक के विपरीत है।
झलकारी बाई अस्पताल- गेट पर ही पार्किंग है जिसकी वजह से आपात स्थित में न तो दमकल पहुंचेगी न ही लोगों को भागने का रास्ता मिलेगा। एंट्री और एक्जिट गेट भी एक ही है। फायर सिस्टम का पता ही नहीं है।
रानी लक्ष्मीबाई हॉस्पिटल- प्रवेश और निकास के लिए एक ही गेट है। बिल्डिंग बहुत पुरानी है। आने वाले मरीजों की संख्या के अनुपात में सभी गेट और सीढ़ियों की चौड़ाई कम है।
अवंतीबाई अस्पताल- फायर फाइटिंग के मानक पर यह अस्पताल बेहद खतरानक है। यहां न हो वाटर हाइड्रेंट है न पंपिंग स्टेशन। वार्डों और स्टॉफ रूम भी मानक के विपरीत बने हैं।
भाऊराव देवरस हॉस्पिटल- इस अस्पताल की बिल्डिंग भी फायर फायटिंग को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई है। सीढ़िया और रैंप बचाव के लिहाज से सही नहीं हैं।
परिवार कल्याण निदेशालय- निदेशाल के बिल्डिंग की हालत यह है कि न तो बिजली उपकरण सही हैं न फायर हाइड्रेंट पर्याप्त लगे हैं। जो लगे हैं उनमें भी पानी की सप्लाई के लिए पंपिंग स्टेशन ही नहीं है।
सामुदायिक केंद्र- गोसाइगंज, मलिहाबाद, चिनहट और बीकेटी के एक भी स्वास्थ्य केंद्र में फायर फाइटिंग का कोई भी उपरकण नहीं लगा है।
शेखर हॉस्पिटल व एफआई हास्पिटल- दोनों निजी अस्पतालों में आग से सुरक्षा के इंतजाम न पाए जाने पर इनके खिलाफ सीजेएम कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया गया है।

राजधानी के अस्पतालों में आग ले चुकी है जान
18 दिस्म्बर 2023:  संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) की ओटी में आग लग गई। हादसे में एक बच्चे सहित तीन लोगों की मौत हो गई। 
2 नवंबर 2024: क्वीन मेरी अस्पताल, KGMU के बेसमेंट में आग लग गई। मौके पर अफरातफरी मच गई और कई लोग अस्पताल के बेसमेंट में फंस गए। 
2 जनवरी 2024: डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल में आग लग गई है। मरीजों और स्टाफ में भगदड़ मच गई। 
9 अप्रैल 2020: केजीएमयू ट्रामा सेंटर में मेडिसिन और हड्डी रोग विभाग में भीषण आग लग गई। लिफ्ट के डक्ट से भड़की आग की लपटें सीलिंग तक पहुंच गई। 
मार्च 2016: झलकारी बाई अस्पताल के पहले फ़्लोर पर शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगी। इस आग से बच्चा वार्ड में हड़कंप मच गया था।
अप्रैल 2016: झलकारी बाई अस्पताल के एसएनसीयू में आग लगी। आग से खौफ़जदा प्रसूताएं अपने बच्चे को गोद में लिए जागती रहीं। 
अक्टूबर 2019: झलकारी बाई अस्पताल में शॉर्ट सर्किट से आग लगी। आग से दो नवजात शिशुओं की हालत गंभीर हो गई थी। 

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