आसियान और भारत

आसियान और भारत

सिंगापुर के साथ विकसित हो रही साझेदारी द्वारा उजागर आसियान के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी, गहन आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव को रेखांकित करती है। पिछले माह  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाओस में  शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-आसियान व्यापक साझेदारी को मजबूत करने के लिए 10 सूत्री योजना की घोषणा कर चुके हैं। शुक्रवार को सिंगापुर में आसियान-‘इंडिया नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक्स’ के आठवें गोलमेज सम्मेलन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि  भारत और आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन) के सदस्य जनसंख्या के लिहाज से बड़े देश हैं और उनका सहयोग समसामयिक मुद्दों के समाधान, खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा म्यांमार जैसे साझा क्षेत्र में राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में अहम हो सकता है।

महत्वपूर्ण है कि भारत व आसियान के बीच बहुपक्षीय संबंधों का विकास देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद से शुरू हुआ और पिछले दशक में भारत-आसियान व्यापार 130 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। गौरतलब है कि सिंगापुर के साथ भारत का जुड़ाव आसियान के साथ अपने व्यापक संबंधों को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है  चूंकि भारत अपनी ‘ एक्ट ईस्ट’ नीति को गहरा करना चाहता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, इसलिए सिंगापुर के साथ संबंधों को बढ़ाना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। आसियान, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित सुरक्षा ढांचे में एक केंद्रीकृत स्थान रखता है। इसका अधिकांश व्यापार समुद्री सुरक्षा पर निर्भर है। यानी भारत को आर्थिक और सुरक्षा दोनों कारणों से आसियान देशों के साथ घनिष्ठ राजनयिक संबंध की आवश्यकता है। 

आसियान देशों के साथ संपर्क से भारत को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में मदद मिलेगी। ये संपर्क परियोजनाएं पूर्वोत्तर भारत को केंद्र में रखती हैं, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों का आर्थिक विकास सुनिश्चित होता है। आसियान देशों के साथ बेहतर व्यापार संबंधों का अर्थ होगा इस क्षेत्र में भारत के लिए आर्थिक वृद्धि एवं विकास।  भारत एवं आसियान देशों के संबंध किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्द्धा एवं दावेदारी से मुक्त हैं और दोनों के पास भविष्य के लिए एक साझा दृष्टिकोण है, जो समावेशन एवं एकीकरण, सभी राष्ट्रों की सार्वभौमिक समानता तथा व्यापार और पारस्परिक संबंधों के लिये स्वतंत्र एवं खुले मार्गों के समर्थन  पर आधारित है। भारत और आसियान की अर्थव्यवस्था साथ मिलकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है। ऐसे में भारत को सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे तकनीकी रूप से उन्नत आसियान देशों के साथ संयुक्त रक्षा उत्पादन पहल पर भी विचार करना चाहिए।