संशोधन के लिए नए साक्ष्य प्रस्तुत करना नई अपील दाखिल करने के बराबर: हाईकोर्ट

संशोधन के लिए नए साक्ष्य प्रस्तुत करना नई अपील दाखिल करने के बराबर: हाईकोर्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मध्यस्थता अधिनियम के तहत संशोधन की मांग में दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि संशोधन के लिए नए आधार प्रस्तुत करना वस्तुतः नई अपील दायर करने के बराबर है। इसलिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील में कोई नया आधार प्रस्तुत करना या कोई नया साक्ष्य प्रस्तुत करना संभव नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए पारित किया।

वर्तमान अपील अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत वाणिज्यिक न्यायालय, झांसी द्वारा पारित निर्णय को रद्द करने की मांग करते हुए दाखिल की गई है। मामले के अनुसार बांदा शहर को केन नदी की बाढ़ से बचाने के लिए मार्जिन बंध के किमी.0.410 पर हेड रेगुलेटर के निर्माण के लिए अपीलकर्ताओं द्वारा 01-08-2008 को निविदा आमंत्रित की गई थी। इसके जवाब में विपक्षी/दावेदार ने आवेदन किया और 10-09-2008 को निविदा खुलने पर वह दावेदार को प्राप्त हुई। 

कार्य प्रारम्भ करने की तिथि 22-11-2008 थी तथा कार्य पूर्ण करने की अवधि नौ माह यानी 21-08-2009 थी। विभिन्न समयों पर कार्य स्थगित और बंद रहने की वजह से परियोजना छह महीने बाद शुरू हुई और इस देरी के लिए ठेकेदार जिम्मेदार नहीं था। इस अत्यधिक देरी और कई अन्य मुद्दों के कारण दावेदार का दावा है कि उसे भारी नुकसान हुआ, जिससे पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ।

मध्यस्थ की लंबी कार्यवाही के बाद एकमात्र मध्यस्थ ने निर्णय पारित कर दिया, जिसे राज्य ने वाणिज्यिक न्यायालय में चुनौती दी। वाणिज्यिक न्यायालय ने विभिन्न प्रासंगिक बिंदुओं पर विचार करने के उपरांत आवेदन को खारिज करते हुए पूर्व निर्णय को बरकरार रखा। अपीलकर्ताओं का तर्क है कि अनुबंध के प्रासंगिक खंडों पर विचार किए बिना ही निर्णय पारित कर दिया गया, जो स्पष्ट रूप से अवैध है।

 कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में हस्तक्षेप का औचित्य केवल तब बनता है, जब न्यायाधिकरण का निष्कर्ष या तो पक्षों के बीच अनुबंध की शर्तों के विपरीत हो या विकृत, अवैध और मनमानीपूर्ण हो। कोर्ट ने नए साक्ष्य पेश करने के संबंध में वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत याचिका में संशोधन की अनुमति धारा 34 (3) के तहत बताई गई सीमा अवधि या समाप्ति के बाद नहीं दी जा सकती है। उक्त दोनों आवेदनों को आधारहीन पाते खारिज कर दिया।

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