हल्द्वानी: 56 साल बाद ढाका ग्लेशियर में दफन मिला शहीद का शव
वर्ष 1968 में लेह से चंढ़ीगढ़ के लिए निकला वायु सेना का विमान हो गया था क्रैश
चालक सहित 102 यात्रियों को लेकर भरी थी उड़ान, आईडी से हुई सिपाही की पहचान
सर्वेश तिवारी, अमृत विचार, हल्द्वानी। भारत-चीन सीमा पर तैनात एक फौजी 56 साल पहले अपने घर के लिए निकला। वह अपने 102 साथियों के साथ वायु सेना के विमान में सवार था। विमान ने उड़ान तो भरी, लेकिन अपने बेस पर वापस नहीं लौट पाया। विमान क्रैश हो गया और सभी 102 लोग लापता हो गए। अब 56 साल बाद पता लगा कि विमान हादसे में लापता हुए सैनिक नारायण सिंह का शव ढाका ग्लेशियर में दफन है। सेना के जवानों ने शव निकाला। शव पहचाने की हालत में नहीं था, लेकिन शव से मिली एक आईडी से शहीद की शिनाख्त सिपाही नारायण सिंह के रूप में की गई।
कोलपुड़ी पोस्ट गेरूर ब्लॉक थराली जिला चमोली के रहने वाले नारायण सिंह वर्ष भारतीय सेना में सिपाही के पद पर तैनात थे। वर्ष 1968 में उनकी तैनाती भारत-चीन सीमा के लेह पर थी। सेना के अधिकारियों ने उनके पुत्र जयवीर सिंह को चार दिन पूर्व एक पत्र भेजा। मेजर साहिल रणदेव की ओर से भेजे गए पत्र में लिखा, 7 फरवरी 1968 को भारतीय वायुसेना का विमान एन-12-बीएल-534 चंडीगढ़ से उड़ा। छह क्रू सदस्यों के साथ विमान लेह पहुंचा, ताकि भारतीय सेना के लोगों को लेह से चंडीगढ़ वापस लाया जा सके। विमान ने लेह से उड़ान भरी।
विमान में कुल 102 यात्री (चालक दल सहित) सवार थे, लेकिन चंडीगढ़ की ओर बढ़ते समय खराब मौसम की वजह से ढाका ग्लेशियर के सामान्य क्षेत्र में विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सिपाही नारायण सिंह भी एक यात्री थे। घटना के बाद सेना लगातार अपने लापता जवानों की तलाश कर रही थी।
इस बीच उन्हें ढाका ग्लेशियर में एक शव मिला। शव पहचाना नहीं जा सकता था, लेकिन शव से एक आईडी मिली, जिस पर जिला टिहरी गढ़वाल उत्तर प्रदेश लिखा था। सेना ने पड़ताल की तो पता लगा कि शव सिपाही नारायण सिंह का था। नारायण सिंह की पत्नी बसंती के पुत्र जयवीर सिंह ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि फौज ने शव मिलने की पुष्टि की है। सभवत: दो दिन बाद शव को गांव लाया जाएगा।
शादी के तुरंत बाद मिली पोस्टिंग और फिर शहादत
जयवीर ने उनकी मां बसंती देवी का 2011 में निधन हो गया। बसंती ने बच्चों को कभी नारायण सिंह के बारे में नहीं बताया। हालांकि बाद में बच्चों को इसका पता लग गया। बसंती से शादी के कुछ समय बाद ही नारायण को लेह में पोस्टिंग मिली। हादसे को जब पांच साल गुजर गए तो नारायण के भाई भवान सिंह ने बसंती को सहारा दिया। शादी की और फिर दो बच्चे सुजान व जयवीर हुए। हालांकि बच्चों पर किसी तरह का मानसिक असर न पड़े तो नारायण को बच्चों से छिपाए रखा गया। आज जयवीर, कुलपुड़ी के ग्राम प्रधान हैं। बड़ा भाई मजदूरी कर जीवन यापन करता है। जयवीर का कहना है कि मां को दो बार पेंशन मिली, उन्हें फौज से उनका हक मिलना चाहिए।
1968 से अब तक बरामद हुए सिर्फ पांच शव
सेना की ओर से जो पत्र जयवीर सिंह को भेजा गया है, उसमें लिखा है कि भारतीय सेना और वायु सेना ने मिलकर कई खोज और बचाव अभियान चलाए गए हैं। अब तक कुल पांच शव बरामद किए गए हैं। सेना एक बार फिर ढाका ग्लेशियर के सामान्य क्षेत्र में खोज और बचाव अभियान चलाएगी, ताकि शहीदों के अवशेषों को ढूंढा जा सके और उन्हें उचित अंतिम सैन्य सम्मान दिया जा सके। सेना ने कहा, यह पीड़ित परिवार के सदस्यों की भावना और इच्छाशक्ति ही है, जो हमारी आत्माओं को शून्य से भी नीचे के तापमान, दुर्गम इलाकों में शहीदों के पार्थिव अवशेषों की खोज जारी रखने के लिए प्रेरित करती है