Sepsis: कोरोना से भी खतरनाक है यह बीमारी, सेप्सिस से हर साल एक करोड़ से अधिक लोगों की हो जाती है मौत

कोविड में यही बीमारी बनी थी मौत की वजह

Sepsis: कोरोना से भी खतरनाक है यह बीमारी, सेप्सिस से हर साल एक करोड़ से अधिक लोगों की हो जाती है मौत

लखनऊ, अमृत विचार। सेप्सिस की समय रहते पहचान जरूरी है, तभी इसका सटीक इलाज हो सकता है। सेप्सिस से शरीर के अंग तक प्रभावित होते हैं। गंभीर स्थिति होने पर लोगों की मौत तक हो जाती है। दुनियाभर में सेप्सिस से हर साल लगभग पांच करोड़ लोग प्रभावित होते हैं, जिसमें से एक करोड़ 10 लाख मरीजों की मौत हो जाती है। कोरोना से भी ज्यादा घातक है यह बीमारी। इतना ही नहीं कोविड से पीड़ित जिन मरीजों की मौत हुई थी, उनमें से कई मौतों की वजह कोविड के दौरान सेप्सिस होना ही रहा है। यह जानकारी विश्व सेप्सिस दिवस पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रो.वेद प्रकाश ने दी है।

उन्होंने बताया कि सेप्सिस से बचाव के लिए प्रमुख कारणों को समझना जरूरी है, लेकिन उससे पहले सेप्सिस होता क्या है, इसकी जानकारी देना जरूरी है। उन्होंने बताया कि सेप्सिस, निमोनिया (फेफडों में संक्रमण) मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण या आपरेशन की जगह होने वाले संक्रमण की वजह से होता है। सेप्सिस प्रमुख रूप से शुगर (डायबिटीज), कैंसर और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवाइयों का सेवन करने से हो सकता है। वहीं स्टेरॉयड का सेवन करने वाले मरीज ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया कि सेप्सिस वैश्विक स्तर पर 5 में से 1 मौत का सबसे बड़ा कारण है। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना लगभग 5 लाख 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। 

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उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में सेप्सिस की घटनाओं में थोड़ी कमी आई है, लेकिन मृत्यु दर बढ़ने की वजह से यह समस्या चिंताजनक रूप लेता जा रहा है।  दुनियाभर में सेप्सिस की चपेट में आने वाले लोगों में 40 फीसदी बच्चे होते हैं। जिनकी उम्र पांच साल से कम होती है। बुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती है। इसके पीछे की वजह बुजुर्गों और बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना है। जो लोग इस बीमारी मे बच जाते हैं, उनमें से 50 फीसदी लोगों को मानसिक बीमारी घेर सकती है। भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं जिनमें करीब 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। विश्व सेप्सिस दिवस हर साल 13 सितंबर को आयोजित किया जाता है। इसके पीछे की वजह दुनिया भर के लोगों के लिए सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का एक अवसर देना है। 

कब होता है सेप्सिस घातक

डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक जैसे-जैसे सेप्सिस बढ़ता है, यह अंग को खराब कर सकता है, जिससे मूत्र उत्पादन में कमी, पेट में दर्द, पीलिया और थक्के जमने की समस्या जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं। सेप्सिस के कारण त्वचा धब्बेदार या बदरंग हो सकती है, जो पीली, नीली या धब्बेदार दिखाई दे सकती है और छूने पर त्वचा असामान्य रूप से गर्म या ठंडी महसूस हो सकती है। सेप्सिस से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को मतली, उल्टी, दस्त या पेट में परेशानी का अनुभव होता है। सबसे गंभीर मामलों में सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है, जिसमें बेहद कम रक्तचाप, परिवर्तित चेतना और कई अंग विफलता के लक्षण होते हैं। सेप्टिक शॉक एक जीवन-घातक आपातकाल है। संक्रमण में फेफड़ों के संक्रमण या यूटीआई के साथ मूत्र संबंधी लक्षणों के मामले में खांसी जैसे लक्षण हो सकते हैं, जो सेप्सिस में बदल सकते हैं।

लक्षण

1. बुखार या हाइपोथर्मिया
2. हृदय गति का बढ़ना
3. तेजी से सांस लेना, सांस फूलना
4. भ्रम 
5. सांस लेने में कठिनाई