धरोहरों का संरक्षण

धरोहरों का संरक्षण

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को हर साल विश्व धरोहर समिति का आयोजन करती है, जिसके तहत विश्व की प्राचीन विरासतों को विश्व धरोहर के रूप में चिन्हित किया जाता है। विश्व धरोहर समिति के इस वर्ष का आयोजन भारत में हो रहा है। भारत में यह आयोजन पहली बार हो रहा है। 21 जुलाई से शुरू हुआ यह आयोजन 31 जुलाई तक चलेगा।

समिति वैश्विक धरोहरों से संबंधित मामलों का प्रबंधन करती है तथा स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के बारे में निर्णय लेती है। हालांकि भारत हमेशा से यूनेस्को समेत संयुक्त राष्ट्र की सभी इकाइयों तथा क्रियाकलापों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा है, पर इस सम्मेलन की मेजबानी यह दर्शाती है कि विश्व के सांस्कृतिक परिदृश्य में भी भारत का महत्व बढ़ रहा है।

समिति के 46 वें सत्र के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा कि भारत इतना प्राचीन है कि यहां वर्तमान का हर बिंदु किसी न किसी गौरवशाली अतीत की गाथा कहता है। प्राचीनता के साथ-साथ विविधता भी भारतीय सभ्यता की एक प्रमुख विशिष्टता है। इसलिए धरोहरों में भी हमें बहुलता के साथ-साथ विविधता के दर्शन होते हैं। इस अवसर पर पूर्वोत्तर भारत के ऐतिहासिक मोइदम को लोकप्रिय विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए नामित किया गया है। इससे पूर्व भारत के 42 स्थल इस सूची में स्थान प्राप्त कर चुके हैं। धरोहर और विरासत का संरक्षण हमारा प्रमुख दायित्व है। इनके बारे में शोध और अनुसंधान भी निरंतर जारी रहना चाहिए।

संस्कृति और इतिहास भी वैचारिक संघर्षों की भूमि होते हैं। ऐसे संघर्षों में पूर्वाग्रह प्रभावी तत्व बन जाते हैं। इस स्थिति में पुरातन के संबंध में हमारी समझ धूमिल हो जाती है तथा हम अतीत के आयामों से पूर्णता एवं समग्रता से परिचित होने से वंचित रह जाते हैं।

अक्सर अज्ञान और अनदेखी से विरासतें नष्ट हो जाती हैं। उनका नष्ट होना इतिहास एवं संस्कृति की वृहत पुस्तिका से एक अध्याय के विलुप्त हो जाने जैसा है। भारत अपनी धरोहरों के संरक्षण तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ दुनिया के अनेक देशों में ऐसे कार्यों में सहयोग दे रहा है। सरकार के प्रयासों से विदेशों में रखी हुईं अमूल्य धरोहरों को देश में वापस लाने के काम में तेजी आई है।

अब तक 350 से अधिक कलाकृतियों को भारत लाया जा चुका है। इससे हमारी सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि हुई है। विश्व धरोहर समिति की दस दिन चलने वाली बैठक में बीते साल के कामकाज की समीक्षा होगी। इस आयोजन में 150 से अधिक देशों के दो हजार से ज्यादा प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। धरोहरों के संरक्षण के आर्थिक लाभ भी हैं। सरकार और विभिन्न संस्थाओं के साथ-साथ नागरिकों को भी इसमें योगदान देना चाहिए।

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