कासगंज: प्रतिबंधित पॉलीथिन का धड़ल्ले से हो रहा प्रयोग और बिक्री, आंखे मूंदे बैठे हैं जिम्मेदार

कासगंज: प्रतिबंधित पॉलीथिन का धड़ल्ले से हो रहा प्रयोग और बिक्री, आंखे मूंदे बैठे हैं जिम्मेदार

कासगंज, अमृत विचार। सर्वोच्च न्यायालय एवं सरकार के आदेश के बावजूद भी जिले में शहर से लेकर गांव तक प्रतिबंधित पॉलीथिन का धड़ल्ले से प्रयोग और बिक्री हो रही है। मुख्य बाजारों में खुलेआम इसकी बिक्री की जा रही है। वर्षों से इसके विरुद्ध कोई अभियान भी नहीं चला है। जिम्मेदार आंखे मूदे बैठे हैं। सर्वोच्च न्यायालय और शासन के आदेश की धज्जियां उड़ रही हैं। 

वर्ष 2021 में 50 माइक्रोन से कम पॉलीथिन के बैग की बिक्री और इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। पर्यावरण के लिहाज से घातक माने जानी वाली इस पॉलीथिन के प्रयोग और बिक्री को लेकर सर्वोच्च न्यायालय और केंद्र सरकार ने भी आदेश जारी किए थे, लेकिन जिले में इन आदेशों की धज्जियां उड़ रही हैं। प्रतिबंधित पॉलीथिन का प्रयोग, बिक्री खुलेआम हो रही है। विक्रेताओं के यहां इनके स्टॉक लगे हुए हैं।

दो वर्षों से इनके विरुद्ध अभियान चलाकर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। यदि कोई अभियान चला भी तो मात्र खानापूर्ति के लिए। जिम्मेदार भी लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं। छोटे रेहड़ी वालों से लेकर बड़ी दुकानों तक पॉलीथिन का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। आम व्यक्ति ही नहीं बल्कि बजुवानों के जीवन के लिए भी यह घातक है। लोगों को जागरूक करना तो दूर जिम्मेदार इसकी रोकथाम के लिए कोई अभियान भी नहीं चला रहे हैं। परिणाम स्वरूप विक्रेताओं के हौसले बुलंद हैं। 

ड्रेनेज व्यवस्था के लिए अभिशाप है पॉलीथिन 
ड्रेनेज व्यवस्था के लिए भी पॉलीथिन का उपयोग घातक है। घरों से उपयोग के बाद पॉलीथिनों में कूड़ाकरकट भरकर इन्हें सड़क पर भरकर फेंक दिया जाता है। और यह नाले नालियों में चली जाती है और ड्रेनेज व्यवस्था के चुनौती बनती है। यही कारण है कि बारिश के दिनों में जब नाले नालियां उफनती है तो सड़कों पर गंदा पानी बहता है। लोग पालिका को इसके लिए दोषी ठहराते हैं। जबकि सही मायने में पॉलीथिन ड्रेनेज व्यवस्था के लिए चुनौती है। 

जिले भर में प्रतिदिन होता है पांच टन का कारोबार  
कासगंज जिले में प्रतिबंधित पॉलीथिन का कारोबार लगभग चार से पांच टन तक का है। इसमें 15 से लेकर 50 माइक्रोन की पॉलीथिन शामिल है। जबकि सरकार इनकी बिक्री और प्रयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा चुकी है, लेकिन आम आदमी तक इसकी जड़ें मजबूत हो गई है। ड्रेनेज और प्रदूषण, स्वास्थ्य  के लिए नासूर बनी पॉलीथिन प्रयोग और बिक्री रोक पाना प्रशासन के लिए भी संभव दिखाई नहीं दे रहा है। 

जमीन की उर्वरक क्षमता भी करती है खत्म 
पॉलीथिन कभी नष्ट नहीं होती है। यह जमीन उर्वरक क्षमता भी खत्म कर रही है। इसे नष्ट प्रोसोसिंग के तहत ही किया जा सकता है, लेकिन प्राय देखा गया है कि लोग इसके कूड़े करकट के साथ जला देते हैं और पॉलीथिन के जलाने से निकलने वाला धुआं ओजन परत को नुकसान पहंचा रहा रहा है। जो ग्लोबल वार्मिंग का भी कारण है।

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