बरेली: क्यों चर्चा में है नवाब साहब का इमामबाड़ा?, खींचतान का दौर जारी...बोर्ड ने माना अब भी रिकॉर्ड में दर्ज संपत्ति

बरेली: क्यों चर्चा में है नवाब साहब का इमामबाड़ा?, खींचतान का दौर जारी...बोर्ड ने माना अब भी रिकॉर्ड में दर्ज संपत्ति

बरेली, अमृत विचार: किला स्थित नवाब साहब का इमामबाड़ा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब उत्तर प्रदेश वक्फ न्यायाधिकरण अपने आदेश में वक्फ संपत्ति 1115 को अवैध और शून्य घोषित कर चुका है तो शिया वक्फ बोर्ड इस पर अपना दावा कैसे कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि न्यायाधिकरण के आदेश के बावजूद इसको वक्फ की संपत्ति बताते हुए चल रही तोड़फोड़ पर रोक लगाने की मांग की शिकायतें अधिकारियों तक पहुंच रही हैं। दूसरी ओर इमामबाड़े को निजी संपत्ति बताने वाला पक्ष शिया वक्फ बोर्ड के दावे को मानने के लिए तैयार नहीं है।

शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के खिलाफ इमामबाड़े को अपनी पुश्तैनी संपत्ति बताने वाली हुमा जैदी के अधिवक्ता सैयद अली मुर्तजा ने बताया कि मार्च 1934 में नवाब साहब ने एक वक्फनामा तैयार करवाया, जिसमें कहा गया कि 17 दुकानों से जो आय आयेगी, वह उनकी कोठी और इमामबाड़ा पर खर्च होगी। नवाब साहब की मौत के बाद उनकी बेटी अनवर जहां बेगम ने सिविल वाद दाखिल किया, जिसमें शिया वक्फ बोर्ड प्रतिवादी था।

उसमें कहीं भी इमामबाड़ा का जिक्र नहीं किया गया था। 1944 में दाखिल मूलवाद में वक्फनामा की वैधता को चुनौती दी गई। 30 अप्रैल 1952 को सिविल जज बरेली ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें वक्फनामा को शून्य घोषित क र दिया गया। वह बताते हैं कि 1960 में शिया वक्फ बोर्ड ने अपने रिकॉर्ड से संपत्ति को डिलीट कर दिया। इसके बाद यह अनवर जहां बेगम के बेटे नवाब तहव्वुर अली खां की जाती संपत्ति हो गई। 

सैयद अली मुर्तजा के मुताबिक 2015 में शिया वक्फ बोर्ड ने इस संपत्ति को दोबारा अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया। इसे भी उत्तर प्रदेश वक्फ न्यायाधिकरण में चुनौती दी गई। कोविड के दौरान नवाब तहव्वुर अली खां की मौत के बाद उनकी बेटी हुमा जैदी इस मामले में वादी बनीं। अप्रैल 2024 में वक्फ न्यायाधिकरण ने आदेश दिया कि शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सभी आदेश जो वादीय व्यक्तिगत संपत्ति को वक्फ संख्या 1115 मानते हुए किए गए हैं, वो शून्य और अवैध घोषित किए जाते हैं।

बोर्ड ने माना अब भी रिकॉर्ड में दर्ज है संपत्ति
खास बात यह है कि इस साल अप्रैल में जहां उत्तर प्रदेश वक्फ न्यायाधिकरण ने इस संपत्ति को वक्फ मानने से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आदेश दिए थे कि इस संबंध में कार्रवाई कर न्यायाधिकरण को अवगत कराए, वहीं बोर्ड की तरफ से 21 मई को जिलाधिकारी को लिखे गए पत्र में कहा गया कि बोर्ड ने न्यायाधिकरण लखनऊ के आदेश पर धारा-37 के रजिस्टर में दर्ज 17 दुकानों को निरस्त कर दिया गया है, लेकिन वक्फ संख्या 1115 एवं इमामबाड़ा बोर्ड के अभिलेखों में दर्ज है। 

अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब वक्फ न्यायाधिकरण संपत्ति को डिलीट करने के आदेश दे चुका है तो बोर्ड इसे अपने रिकॉर्ड में दर्ज क्यों बता रहा है। इमामबाड़े के मुतवल्ली होने के दावा करने वाले जमीर रजा भी यह ही कहते हैं कि न्यायाधिकरण ने महज 17 दुकानों को लेकर आदेश दिया है, पूरे इमामबाड़े को लेकर नहीं।

वो झूठ बोलकर भ्रम फैला रहे हैं
बरेली के जिला न्यायालय ने इमामबाड़े से सम्बद्ध दो बाग और 17 दुकानों को वक्फ से अलग कर दिया था, लेकिन इमामबाड़ा तो तब भी वक्फ का ही हिस्सा था। जिला न्यायालय के फैसले के खिलाफ शिया वक्फ बोर्ड ने हाईकोर्ट का रुख किया तो 1961 में हाईकोर्ट ने दोनों बागों को वक्फ सम्पत्ति माना, लेकिन 17 दुकानों को परिवार के सुपुर्द कर दिया। वक्फ सम्पत्ति होने के बावजूद इसमें से एक बाग बेच लिया गया। 2015 में बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध जाकर 17 दुकानों को फिर से वक्फ में शामिल कर लिया। इसके खिलाफ हुमा जैदी और नदीम जैदी ने फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने बोर्ड के फैसले को गलत मानते हुए इन्हें फिर 17 दुकानें लौटा दीं। किला इमामबाड़ा तो वक्फ अलल खैर है। इसमें इनका कोई अधिकार ही नहीं है। वो झूठ बोलकर भ्रम फैला रहे हैं- अली जैदी, अध्यक्ष, शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड

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