गोंडा: झोलाछाप के इलाज से बच्चे की मौत, परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगा थाने पर किया प्रदर्शन

गोंडा: झोलाछाप के इलाज से बच्चे की मौत, परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगा थाने पर किया प्रदर्शन

धानेपुर/गोंडा, अमृत विचार। धानेपुर थाना क्षेत्र के कुतुबगंज बाजार में संचालित झोलाछाप चिकित्सक की क्लीनिक पर इलाज के दौरान त्रिभुवन नगर ग्रांट गांव के रहने वाले एक बच्चे की मौत हो गई। युवक की मौत के बाद परिजनों ने झोलाछाप चिकित्सक पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा किया और धानेपुर थाने पर प्रदर्शन कर उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव का पंचनामा भरकर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा है और घटना की जांच पड़ताल में जुटी है। 

धानेपुर थाना क्षेत्र के त्रिभुवननगर ग्रांट गांव के मजरे सौरहवा के रहने वाले अजीत कुमार चौहान के मुताबिक चार दिन पहले उसके 12 वर्षीय बेटे यशवंत की तबीयत खराब हो गई थी। पेट में दर्द की शिकायत पर उसकी पत्नी विमला ने उसे कुतुबगंज बाजार स्थित एक झोलाछाप चिकित्सक राजेश यादव को दिखाया था। तीन दिन तक इलाज के बाद शुक्रवार को राजेश ने जवाब दे दिया और उसे दूसरे डॉक्टर को दिखाने के लिए कहा।

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शनिवार को जब उसकी पत्नी बेटे यशवंत को इलाज के लिए गोंडा ले जा रही थी तभी रास्ते में यशवंत की मौत हो गयी। अजीत का आरोप है कि झोलाछाप चिकित्सक राजेश की लापरवाही से उसके बेटे की मौत हो गयी। बेटे की मौत के बाद अजीत और उसके परिवार वालों ने धानेपुर थाने पर हंगामा किया और प्रदर्शन करते हुए झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। मृतक यशवंत के पिता अजीत ने चिकित्सक राजेश यादव के खिलाफ धानेपुर थाने में तहरीर दी है।‌ पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा है। थानाध्यक्ष सुनील सिंह ने बताया कि घटना की जांच कराई जा रही है। 

अवैध रूप से क्लीनिक चलाता है राजेश यादव

बलरामपुर जिले के रेहरा थाना क्षेत्र के मौजा देवारी खेरा का रहने वाला राजेश यादव कुतुबगंज बाजार में अवैध रूप से क्लीनिक चलाता है। बीते 29 मई को गोंडा बलरामपुर जिले की औषधि प्रशासन की संयुक्त टीम ने राजेश यादव के मेडिकल स्टोर पर छापेमारी की थी और करीब एक लाख रुपये की दवा सीज की थी। राजेश यादव के खिलाफ भी विधिक कार्रवाई के संस्तुति हुई थी और एफआईआर दर्ज करने की बात कही गई थी। जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस कार्रवाई की जानकारी दी थी, लेकिन यह कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित रही और मामले को ले देकर रफा दफा कर दिया गया। अगर उस समय प्रभावी कार्रवाई हुई होती और क्लीनिक का संचालन बंद कराया गया होता तो बच्चे की जान नहीं जाती।

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