Kannauj News: जन उपेक्षा, भाषा की टूटती मर्यादा से ढहा किला...व्यापारियों के साथ ही पार्टी के वरिष्ठों की उपेक्षा सुब्रत को पड़ी भारी

Amrit Vichar Network
Published By Nitesh Mishra
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‘घर’ को ठीक से संभाल लेते तो न आती ये नौबत

कन्नौज, (इरा अवस्थी)। लोकसभा चुनाव 2024 मतगणना के साथ संपन्न हो गया। कन्नौज की चर्चित सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चौथी बार बड़ी जीत हासिल कर भाजपा प्रत्याशी को जोरदार पटखनी दी। सांसद सुब्रत पाठक का किला ढहने का बड़ा कारण जन उपेक्षा व भाषा की टूटती मर्यादा बनी। इसके साथ ही क्षेत्र के व्यापारियों की नाराजगी और पार्टी के वरिष्ठों की उपेक्षा भी भारी पड़ गई।

अब जब कि परिणाम सामने आ चुके हैं तो इस बात पर चर्चा तेज हो गई कि वर्ष 2019 में सपा प्रत्याशी को नजरों से उतारने वाले मतदाता ने इस बार फिर से क्यों मान दे दिया? क्या वजह रही कि स्थानीय निवासी व निवर्तमान सांसद सुब्रत पाठक को पुराने प्रतद्वंद्वी अखिलेश यादव से मुंह की खानी पड़ी। यह भी तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी सरकार में लाई गई योजनाओं से जिले के भी लाभार्थी लाभान्वित किए गए।

इन सवालों के जवाब कुछ इस तरह से सुनने को मिल रहे हैं कि जन उपेक्षा करते हुए सांसद ने एक खास वर्ग को तो साधने में रुचि दिखाई लेकिन जमीनी स्तर के लोगों की अनदेखी कर दी। कुछ की शिकायत है कि जब काम के लिए गए तो या तो बात नहीं हुई और बात हुई तो काम नहीं हुआ। फोन करने पर उनके यहां काम करने वाले कारिंदे रिसीव करते और दादा की व्यस्तता का हवाला दे देते।

पलट कर बात तक नहीं कराते। और तो और पांच साल के अंतराल में क्षेत्र में कोई भी ऐसा विकास का काम नहीं किया जो आंखों से देखा जा सके। यहां तक कि चुनाव के दौरान भी वे स्थानीय मुद्दों की बजाय लोगों को मोदी-योगी के काम गिनाकर ही भरमाने की कोशिश करते रहे। इसी तरह चुनाव की घोषणा से पहले विवादित बयानों वाले ऑडियो- वीडियो वायरल हुए। जनवरी के महीने में एक ऑडियो वायरल हुआ।

जिसमें भाजपा के युवा नेता को अपशब्द कहने के साथ ही बजरंगबली के प्रति भी आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग सुना गया। इस प्रकरण में तो आजाद अधिकार सेना के अध्यक्ष व रिटायर्ड आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने तो उच्चाधिकारियों के अलावा आईजीआरएस पर भी शिकायत की थी। बताया गया कि सांसद ने इत्र उद्योग को पंख तो नहीं दिए बल्कि ऐसा कुछ किया जिससे कारोबारियों में मायूसी छा गई।

सत्ता के दम के आगे मजबूरी ऐसी कि बोल भी नहीं सके। लोगों का कहना है कि तमाम विवादों के बाद भी टिकट फिर से मिला तो सांसद के हौसले और ऊंची उड़ान भरने लगे लेकिन इस बीच यह भूल गए कि जनता की अदालत लगने वाली है। तभी तो टिकट मिलने पर भी उनके तेवर नहीं बदले और नामांकन के दिवस पर भी दम भरा कि उनका ‘गढ़’ है तो हमारा ‘घर’ है। मुद्दे की बात यह कि जब यहां घर है तो सभी बड़े-छोटों, अपने-परायों को साध कर रखते तो जनता कभी नकारती ही नहीं।

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