बरेली-आंवला दोनों सीटों पर कांटे की टक्कर, कौन मारेगा बाजी?, 4 जून तक चैन की नींद आना मुश्किल

बरेली-आंवला दोनों सीटों पर कांटे की टक्कर, कौन मारेगा बाजी?, 4 जून तक चैन की नींद आना मुश्किल

बरेली, अमृत विचार: किसी भी लहर और हवा से अलग लोकसभा चुनाव 2024 में बरेली और आंवला सीट का नतीजा कांटे की लड़ाई में फंस गया है। बरेली में इंडिया गठबंधन और भाजपा के बीच पहली बार सीधी लड़ाई का क्या नतीजा निकलेगा और भाजपा प्रत्याशी छत्रपाल गंगवार संतोष गंगवार जैसा प्रदर्शन कर पाएंगे या नहीं, यह सबसे बड़ा सवाल है। माना जा रहा है कि आंवला में मुस्लिम वोटरों में बसपा का प्रदर्शन सपा और भाजपा दोनों का खेल प्रभावित कर सकता है।

इस चुनाव में मतदाताओं ने जिस कदर खामोशी के साथ मतदान किया है, वह दोनों प्रमुख पार्टियों की बेचैनी बढ़ाने वाला है। भाजपा के लिए फिलहाल बड़ी राहत की बात यही है कि काफी खींचतान करने के बाद बरेली-आंवला दोनों सीटों पर मतदान का प्रतिशत लोकसभा चुनाव 2019 से ज्यादा कम नहीं रहा है। बरेली संसदीय क्षेत्र के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत के बीच बड़ा अंतर रहने के पीछे क्या रहस्य है, यह पता लगना भी अभी बाकी है। 

सर्वाधिक मतदान भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र में हुआ है, जहां फिलहाल सपा के शहजिल इस्लाम विधायक हैं। शहर में हमेशा की तरह भाजपा प्रत्याशी के सपा पर हावी रहने में कोई शक नहीं है, यही स्थिति कैंट विधानसभा क्षेत्र में भी है लेकिन इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में बाकी तीन विधानसभा क्षेत्रों की तुलना में काफी कम मतदान हुआ है। नवाबगंज और मीरगंज में भी लगभग भोजीपुरा जैसा ही मतदान हुआ है। इन दोनों सीटों पर भी सपा और भाजपा के बीच कड़ी लड़ाई होती रही है।

आंवला लोकसभा सीट के चुनावी समीकरण बरेली से अलग रहे हैं। यहां के भी सभी विधानसभा क्षेत्रों में सपा और भाजपा में सीधी टक्कर रही। इस सीट पर बसपा की उपस्थिति जरूर रही लेकिन किसी भी विधानसभा क्षेत्र में मुख्य लड़ाई में वह शामिल नहीं दिखी।

बसपा प्रत्याशी आबिद अली कुछ ही मतदान केंद्रों पर मुकाबले में दिखाई दिए, वह भी वहां जहां दलित मतदाताओं की बहुलता है। इस सीट पर भी ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा की ओर दिखा, हालांकि इस सीट पर लड़ाई इतनी कड़ी मानी जा रही है कि 15-20 हजार मुस्लिम वोट भी बसपा को मिलना बाजी पलट सकता है। आंवला में यह भी चर्चा पूरे चुनाव भर रही कि भाजपा के कुछ वोटरों में सपा सेंधमारी कर सकती है।

क्षत्रियों का गुस्सा, कुर्मियों की उदासीनता और दलितों का रुख भी दिखाएगा असर
बरेली के मुकाबले आंवला में इस बार के चुनाव में जातिगत फैक्टर शुरू से ही ज्यादा हलचल मचाए हुए थे। भाजपा प्रत्याशी धर्मेंद्र प्रत्याशी से क्षत्रियों की नाराजगी से भाजपा कितनी बेचैन थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कई सभाएं करनी पड़ीं, दातागंज में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को भी जोर लगाना पड़ा। ब्राह्मणों की ओर से भी भाजपा प्रत्याशी का विरोध जताया गया था। 

आंवला में क्षत्रियों की संख्या अच्छी-खासी है, लिहाजा अब चुनाव परिणाम ही बताएगा कि क्षत्रियों का विरोध शांत करने में भाजपा कितनी कामयाब रही। बरेली में संतोष गंगवार का टिकट कटने के बाद कुर्मी समाज के मतदाताओं ने शुरुआती विरोध के बाद चुप्पी साध ली थी। माना तो यही जा रहा है कि ज्यादातर कुर्मी वोट हमेशा की तरह भाजपा के ही पाले में गया है लेकिन अभी चुनाव परिणाम से इस पर मोहर लगनी बाकी है। 

इन दोनों के साथ सबसे बड़ा फैक्टर दलित मतदाता भी माने जा रहे हैं। बरेली में बसपा का प्रत्याशी न होने की वजह से उनका रुख सपा और भाजपा दोनों की तरफ रहा। माना जा रहा है कि आंवला में भी पूरा दलित वोट बसपा को ही नहीं मिला। इसका भी आंकलन होना बाकी है।

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