गोंडा: सिद्धपीठ मां बाराही का का मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक, हिंदुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी टेकते हैं माथा

गोंडा: सिद्धपीठ मां बाराही का का मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक, हिंदुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी टेकते हैं माथा

गोंडा। जनपद मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर की दूरी पर ग्रामसभा मुकुंदपुर में स्थित शक्तिपीठ मां बाराही का मन्दिर प्राकृतिक सौंदर्य का द्योतक है। सूकर क्षेत्र में विशाल वटवृक्ष के नीचे बना हुआ शक्तिपीठ मां बाराही मंदिर में माथा टेक कर मांगने वालों की सभी मुरादें पूरी होती हैं। 

यहां हिंदुओं के साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग भी माथा टेकने पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार शुक्रवार के साथ-साथ नवरात्र के महीने में हजारों की संख्या में भक्त मां के दर्शन कर अपनी मन्नत मांगते हैं। शक्ति की साधना अनंत काल से चली आ रही है क्योंकि सत्य के बिना शरीर निर्जीव की भांति रहता है। शक्ति और सर्वेश्वर से सारा जगत व्याप्त है। कहीं भी शक्ति के बिना शब्द भी बनना असंभव है। अगर परमेश्वर अक्षर है तो शक्ति मात्रा है। 

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प्रचलित मान्यता के अनुसार मां बाराही के चरणों में माथा टेककर मांगने वाले की सभी मुरादें पूरी होती हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार जब रक्तबीज का  बध करना था तो उस समय मां जगदंबा ने अपनी अद्भुत शक्तियों का प्रदर्शन किया है। उनके आह्वान पर बाराही, इंद्राणी, ब्राह्मी, वैष्णवी, नरसिंही आदि देवियॉं उक्त आताताई के संघार के लिए रणभूमि में उपस्थित हुईं।

वराह पुराण के अनुसार जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य पृथ्वी को चुरा ले गया था तो उस दैत्य का वध करने के लिए भगवान विष्णु को वराह का रुप धारण करना पड़ा और पाताल लोक पहुंचने के लिए शक्ति की आराधना की तो सुखमनी नदी (अब सुखनई) के तट पर मां बाराही देवी अवतरित हुईं थीं।

इसलिए प्रारंभ काल में इस स्थान को अवतरी भवानी के नाम से जाना जाता था और अब उत्तरी भवानी के नाम से जाना जाता है। यहां की पुजारी साध्वी रामा ने बताया कि मंदिर में  सुरंग आज भी सुरक्षित है। सुरंग के ऊपर बने अरघे में दिन रात दीपक जलता रहता है। नवरात्र माह में मंदिर को प्रतिदिन अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है और माता के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।

अखियां चढ़ाने का है विशेष प्रचलन

मान्यता है कि आंखों की रोशनी चली जाने के बाद मंदिर का दर्शन कर यहां का नीर और वट वृक्ष का दूध आंखों में डालने पर रोशनी वापस आ जाती है और इसके लिए पीड़ित श्रद्धालु 15 दिनों तक यहां रहकर श्रद्धा भाव से माता की सेवा करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।

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