बरेली: तौकीर ने दिया भड़काऊ भाषण तो फूंक दी गई कोहाड़ापीर चौकी, गवाहों के बयान से हुआ साफ
सरकारी रिकॉर्ड जलाया, मंदिर की मूर्तियां भी तोड़ दीं
बरेली, अमृत विचार। कोर्ट में सुनवाई के दौरान गवाहों की गवाही से साफ हुआ कि मौलाना तौकीर रजा खां ने ही 2010 में शहर में दंगा भड़काया था। तौकीर की भड़काऊ तकरीर के बाद बलवाइयों ने कोहाड़ापीर पुलिस चौकी को फूंक दिया था और सरकारी रिकार्ड जलाने के साथ मंदिर में मूर्तियां भी तोड़ दी थीं।
कोर्ट ने आदेश में साफ किया है कि गवाह रामनिवास शर्मा और तत्कालीन चौकी प्रभारी छावनी अशरफ खां ताहिर हुसैन के बयान से साफ हुआ कि मौलाना तौकीर ने ही दंगा भड़काया था। विवेचक सुभाष चंद्र यादव ने भी अपने बयान में कहा कि दो मार्च 2010 को जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान उनकी ड्यूटी कोहाड़ापीर में थी। इस जुलूस में आसपास के गांवों से तमाम अंजुमन अलग-अलग रास्तों से कोहाड़ापीर आती हैं। यहीं से सभी अंजुमन एक बड़े जुलूस की शक्ल में कुतुबखाना होते हुए कोतवाली की ओर निकलती हैं।
विवेचक के बयान के मुताबिक दंगे वाले दिन दोपहर करीब 2ः30 बजे दिन गुलाबनगर की ओर से आने वाली कुछ अंजुमनों को उनके साथ आने वाले लोगों ने मोहल्ला चाहबाई होते हुए गैर परंपरागत मार्ग से निकालने का प्रयास किया जिसका हिंदू समुदाय ने विरोध किया। इस कारण दोनों पक्षों में पथराव हुआ था। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचकर झगड़े को रोकने का प्रयास कर रहे थे। इसी बीच तौकीर रजा खां ने कोहाड़ापीर तिराहे पर बने मंच पर आकर तकरीर की।
कहा, ‘पुलिस एवं प्रशासन के अफसर कान खोलकर सुन लें कि गुलाबनगर की ओर से आने वाले जुलूस को चाहबाई होकर गुजरने दें, नहीं तो मैं जुलूस के आगे चलकर हिंदुओं की छाती पर चढ़कर जुलूस को गुजारूंगा। आधा घंटे का समय देता हूं, नहीं तो मैं जुलूस को चाहबाई ही होकर गुजारूंगा, चाहे मुझे खून की नदियां ही क्यों न बहानी पड़ें। अगर प्रशासन ने जुलूस को इस रास्ते से नहीं गुजरने दिया तो अपने भाइयों को साथ लेकर हिंदुओं के मोहल्ले में चढ़ जाऊंगा और उनके मकान और दुकानों को तहसनहस कर जलाकर राख कर दूंगा।''
मौलाना ने 20-25 मिनट बाद फिर इन्हीं बातों को दोहराया, जिससे मुस्लिम समुदाय के लोगों में उत्तेजना फैल गई। उग्र हुए ये लोग टुकड़ियां बनाकर हिंदुओं को मारो-मारो, काटो-काटो का शोर मचाते हुए हाथों में लाठी, तलवारें, नाजायज तमंचे के साथ हिंदुओं, ड्यूटी में लगे पुलिस-प्रशासन की अधिकारियों और कर्मचारियों पर आक्रमण करने लगे थे। इससे भय और आतंक का माहौल फैल गया और अफरातफरी फैल गई। लोहे की सरिया आदि से हिंदुओं की दुकानों के शटर ताले तोड़कर पहले से लाए एक-एक लीटर के छोटे सिलेंडरों और बोतलों में बने पेट्रोल बम से आग लगाना शुरू कर दिया।
गवाहों के बयान से साफ हुआ कि बलवाइयाें ने योजनाबद्ध तरीके से बलवा किया था और चौकी कोहाड़ापीर में घुसकर परिसर में रखी मोटर साइकिलों और रिकार्ड को आग लगाने के साथ मंदिर की मूर्तियां भी तोड़ दी थीं। यह दंगा मौलाना तौकीर रजा की भड़काऊ तकरीर के बाद शुरू हुआ था।
सत्ता के इशारे पर चार्जशीट से हटा था तौकीर का नाम
कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि दंगा भड़काने के मास्टर माइंड मौलाना तौकीर रजा खां का नाम विवेचना में पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया, जिससे प्रतीत होता है कि तत्कालीन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी और शासन के अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों का पालन करने के बजाय दंगा भड़काने वाले तौकीर का जानबूझकर सहयोग किया। तत्कालीन कमिश्नर, डीएम, एसएसपी, आईजी, डीआईजी ने विधिक रूप से कार्य न करके सत्ता के इशारे पर कार्य किया और अपने अधिकार से परे जाकर दंगे के मास्टर माइंड मौलाना तौकीर का सहयोग किया।
सात आरोपियों के विरुद्ध गैर जमानती वारंट भी
कोर्ट ने अभियुक्त बाबू खां, आरिफ, अमजद अहमद, निसार अहमद, अबरार, राजू उर्फ राजकुमार, कौसर के गैरहाजिर रहने पर कोर्ट ने इन सातों को गैरजमानती वारंट जारी कर तलब किया है। इसके साथ रिजवान, दानिश, राजू, हसन, सौबी रजा, यासीन की हाजिरी माफी अंतिम अवसर के साथ मंजूर की।
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