शाहजहांपुर में आंकड़ों की बाजीगरी, सीजन में 15 और ऑफ सीजन में 65% धान खरीद... अब उठ रहे सवाल

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Published By Vikas Babu
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शाहजहांपुर, अमृत विचार: सीजन की जगह ऑफ सीजन में हुई धान की बंपर खरीद सवालों के घेरे में आ गई है। कहा जा रहा है कि नवंबर के अंतिम सप्ताह में खेतों में धान का एक दाना तक न बचने के बाद भी आखिर दिसंबर और जनवरी में धान खरीद का आंकड़ा कैसे बढ़ता रहा। यह क्या जादू है कि मुख्य सीजन में सिर्फ 15 प्रतिशत धान खरीदने वाले खाद्य विभाग ने ऑफ सीजन में 65 प्रतिशत धान खरीद डाला। 

अक्टूबर और नवंबर माह में धान की पूरी कटाई हो चुकी थी। इसके बाद भी दिसंबर और जनवरी में खाद्य विभाग की सरकारी खरीद का आंकड़ा आखिर किस करिश्माई छड़ी से बढ़ता रहा। सबसे बड़ा सवाल है कि ऑफ सीजन में दो लाख 35 हजार 229.401 मीट्रिक टन धान आया कहां से। 

जिले में पहली अक्टूबर से धान खरीद शुरू की गई थी, जिसके लिए 203 क्रय केन्द्र बनाए गए। शासन की ओर से जिले में धान खरीद का लक्ष्य 3,65,000 मीट्रिक टन रखा गया है। हैरानी की बात यह है कि अक्टूबर महीने में धान की खरीद बेहद धीमी गति से की गई। नमी आदि का बहाना बनाकर किसानों को सरकारी तौल केंद्रों से लौटाया जाता रहा। ऐ

से में अक्टूबर के आंकड़े तक विभाग ने अपनी सूची में शामिल नहीं किए। नवंबर महीने में सख्ती हुई तो 11 नवंबर तक 27,789.770 मीट्रिक टन खरीद की गई, जो लक्ष्य के सापेक्ष 7.61 प्रतिशत रही। इस पर विभागीय स्तर पर किरकिरी हुई तो फिर आंकड़े बढ़ने लगे और 22 नवंबर तक 56,731.150 मीट्रिक टन खरीद कर 15.54 प्रतिशत का आंकड़ा हासिल कर लिया। 

छह दिसंबर को महज 1,33,115.359 मीट्रिक टन धान खरीद हो पाई थी, जो लक्ष्य का 36.47 प्रतिशत ही थी। इधर 11 दिनों में 17 दिसंबर तक 50 प्रतिशत यानी 1,84,714.53 मीट्रिक टन धान खरीद कर ली गई है।
सरकारी आंकड़ों में अक्टूबर और नवंबर महीने की शुरुआत तक धान खरीद बेहद कम रही। सरकारी केन्द्रों से मायूस होकर लौटे अधिकांश किसानों का धान आढ़तियों ने खरीदा। इसके बाद ऑफ सीजन में सरकारी क्रय केंद्रों पर धान कहां से आया।

नवंबर अंतिम सप्ताह से खरीद ने पकड़ी रफ्तार
 इसके बाद भी हैरतअंगेत तरीके से नवंबर के अंतिम सप्ताह में ही धान की खरीद अचानक बढ़ने लगती है। 22 नवंबर तक 56,731.150 मीट्रिक टन धान खरीदा गया था जो कुल लक्ष्य का मात्र 15.54 प्रतिशत था। जबकि अगले 14 दिन में छह दिसंबर तक धान खरीद का आंकड़ा 1,33,115.359 एमटी पहुंच गया था, जो कुल खरीद का 36.47 प्रतिशत था। 

खाद्य विभाग की धान खरीद का आंकड़ा यहीं नहीं रुका। यह आंकड़ा आगे ही बढ़ता रहा। 17 दिसंबर को 1,84,714.53 एमटी यानी 50 प्रतिशत और 31 जनवरी तक 291960.551 एमटी यानी लगभग 80 प्रतिशत पहुंच गया। जबकि किसानों के अनुसार वह अक्टूबर और नवंबर माह में अपना सारा धान बेच चुके थे। 

उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें बैंक, साहूकार और दुकानदारों का उधार चुकाना था। साथ ही नवंबर माह में ही गेहूं की बुवाई करनी थी। ऐसे में सवाल उठ रह है कि जब किसान अपना सारा धान बेच चुके थे तो फिर खाद्य विभाग की धान खरीद सीजन ऑफ होने के बाद कैसे रफ्तार पकड़ रही थी। गौर करने वाली एक और बात है कि अक्टूबर और नवंबर में जब धान खरीद केंद्र सूने पड़े रहे तो धान खरीद आंकड़ों में  कैसे बढ़ती रही। 

नमी का बहाना बनाकर नहीं खरीदा जाता धान
किसानों का कहना है कि सीजन पर जब वह धान लेकर सरकारी खरीद केंद्र पर जाते हैं तो नमी का बहाना बनाकर उनका धान नहीं खरीदा जाता है। किसान सर्वेश, विमलेश, आदिल, मोहम्मद ताज, समीर, सागर आदि ने बताया कि अक्टूबर और नवंबर माह की लगभग 20 तारीख तक धान खेतों में रहता है। इस दौरान किसान खूब सरकारी केंद्रों पर धान लेकर पहुंचते हैं, लेकिन नमी का बहाना बनाकर उन्हें लौटा दिया जता है क्योंकि खरीद वास्तव में नहीं बल्कि आंकड़ों में की जानी होती है। 

जिले में धान खरीद के यूं बढ़े आंकड़े
   तारीख    -     खरीद एमटी में-    प्रतिशत
11  नवंबर -    27,789.770   -    7.61
22 नवंब र -    56,731.150   -    15.54
06 दिसंबर - 1,33,115.359  -    36.47
17 दिसंबर -  1,84,714.53   -    50
31 जनवरी - 291960.551    -    80

क्या कहते हैं किसान-
कागजों में हेरफेर करके जनवरी तक धान खरीद की जाती है। एक किसान के पास ढ़ाई एकड़ जमीन होने के बाद भी उसके खाते में पौने दो सौ क्विंटल का पेमेंट भेजा जाता है। इस तरह खरीद के आंकड़े बढ़ाए जाते हैं--- सचिन मिश्रा, किसान नेता।

धान खरीद में बिचौलिए खेल करते हैं। अपने चहेते किसानों की खेती बढ़ाकर चढ़वाई जाती है और बाद में उनके खाते में पेमेंट भेजा जाता है। ऐसे में असली किसानों की जगह बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं---अखिलेश यादव, किसान नेता।

किसानों से वास्तव में धान खरीद नहीं होती है। मिलों पर बिकने वाले धान को सरकारी खरीद दिखाया जाता है। ऐसे में किसानों को प्रति क्विंटल 200 से 400 रुपये की चपत लगती है--- महेंद्र सिंह, किसान नेता।

किसानों को अपनी फसल का वास्तविक दाम नहीं मिल पा रहा है। बिचौलिए लाभ ले रहे हैं। जब तक बिचौलिओं का खेल बंद नहीं होगा तब तक किसानों का धान सरकारी क्रय केंद्रों पर नहीं बिकेगा--- हरदीप सिंह, किसान।

कुछ किसान धान का भंडारण कर लेते हैं और बाद में सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचते हैं। अगर सरकारी केंद्रों पर धान खरीदा नहीं गया तो आया कहां से। सारे सवाल बेवुनियाद हैं---राकेश मोहन पांडेय, डिप्टी आरएमओ।

लक्ष्य के सापेक्ष्य लगभग 80 प्रतिशत धान खरीदा गया है। लक्ष्य पूरा करने का प्रयास किया गया, लेकिन किसी कारण पूरा नहीं हो सका। अक्टूबर-नवंबर में धान खरीद होती हो ऐसा नहीं है, जनवरी तक धान खरीद जारी रहती है--- संजय कुमार पांडेय, एडीएम प्रशासन व जिला धान खरीद अधिकारी।

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