बाराबंकी: विषमुक्त सब्जियों का किया उत्पादन तो प्रगतिशील कृषक को कृषि मंत्री से मिला सम्मान
बाराबंकी। विषमुक्त सब्जियों के उत्पादन के लिए बाराबंकी के किसान को गुरुवार को लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। यह किसान एकीकृत नाशी प्रबंधन तकनीक का उपयोग कर सब्जियों का उत्पादन कर रहा है। जिसमें कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं किया जाता है।
जिला उद्यान अधिकारी महेश श्रीवास्तव ने बताया कि शिल्प ग्राम, लखनऊ में आयोजित उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन द्वारा विषमुक्त सब्जियों के उत्पादन पर जनपद बाराबंकी के प्रगतिशील कृषक दिनेश वर्मा ग्राम सरसौंडी विकास खण्ड देवा को कृषि मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
जानिये क्या है एकीकृत नाशी प्रबंधन तकनीक
प्रदेश में कृषि के प्रति वांछित आकर्षण पैदा करने एवं उसको कम खर्चीला और अधिक लाभकारी बनाने के लिए जिन उपायों पर गौर किया जा रहा है, उनमें प्रमाणित एवं उपचारित बीजों की उपलब्धि, उर्वरकों का सही ढ़ंग से उपयोग, अच्छा जल प्रबन्ध एवं इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट मुख्य हैं।
प्रदेश में हर साल अनेक कीट, रोगों, चूहों एवं खरपतवारों से फसली की उपज पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं में धान का बाल काटने वाला सैनिक कीट, धान का गन्धी कीट, चने एवं अरहर की फली बेधक, मूंगफली का सफेद गिडार, सरसों का माहूं, आम का फुदका, आलू का पछेता झुलसा, मटर का बुकनी रोग, टमाटर एवं भिण्डी का मौजेक, अरहर का बन्झा रोग और गेहूं का मामा आदि कुछ प्रमुख समस्याऐं हैं।
अभी तक इन समस्याओं से निपटने के लिए आमतौर पर केवल रसायनों का ही सहारा लिया जाता रहा है। यह रसायन खर्चीले होने के साथ-साथ वातावरण को दूषित करते हैं एवं कई प्रकार की दुर्घटनाओं का भय भी बना रहता है। इन रसायनों के अवशेष अक्सर फूलों एवं सब्जियों आदि में रह जाते हैं तथा उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ सकते हैं।
रसायनों के निरन्तर उपयोग से कई कीटों में उनके विरूद्ध रेसिसटेंस पैदा हुआ है और बहुत से कम महत्वपूर्ण कीट बड़ी समस्यायें बन जा रहे हैं। साथ ही साथ खेत में या वातावरण में उपस्थित परजीवी कीट समाप्त हो जाते हैं और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है। समस्याओं के प्रभावी निदान एवं उपर्युक्त खतरों से बचने लिए अब जिस पद्धति पर जोर दिया जा रहा है उसको इंटीग्रटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट या एकीकृत नाशीजीव प्रबन्ध कहा जाता है। इस पद्धति में कीटों रोगों और खरपतवारों आदि के उन्मूलन या नियन्त्रण के बजाय उनके प्रबन्ध की बात की जाती है।
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