रामकथा के लिए बाराबंकी के संत को ब्रिटिश सरकार ने दी थी महामहोपाध्याय उपाधि, रामभक्ति में लिख डालीं 24 पुस्तकें
गोस्वामी तुलसीदास के समग्र साहित्य के टीकाकार के रूप में पाई प्रसिद्ध
कवेन्द्र नाथ पाण्डेय, बाराबंकी। अवध क्षेत्र का बाराबंकी जनपद अयोध्या ही नहीं प्रभु राम से सदियों से जुड़ा रहा है। बाराबंकी के एक ऐसे संत हुए जिनको रामकथा के लिए ब्रिटिश सरकार ने सन 1889 के करीब महामहोपाध्याय की उपाधि से नवाजा। श्री राम भक्त कवि बाबा बैजनाथ गोस्वामी तुलसीदास के समग्र साहित्य के टीकाकार के रूप में प्रसिद्व हुए। अयोध्या की बड़ी छावनी में एक शिलालेख पर लिखे दोहे की एक पंक्ति में "कूर्मि वंश जन्मत भये बैजनाथ नरभूप॥" आज भी अंकित है।
बाराबंकी की धरती अत्यंत पावन है, यहां संत चतुर्भुज दास, संत जगजीवन दास, संत विशालदास आदि अनेक संतकवि लेखक हुए हैं। संतों की वाणी अमृत समान होती है, वहीं जब एक संतकवि की लेखनी से साहित्य रचता है तो वह या तो मंत्र बनता है या फिर ग्रंथ। जिले के ऐसे ही संतों ने कई-कई ग्रंथों की रचना की। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर जहां राजनीति हो रही है। ऐसे में रामकथा के लिए ब्रिटिश सरकार से महामहोपाध्याय की उपाधि पाने वाले संत की बात न करना बेमानी होगा। बाराबंकी शहर से महज 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव मानपुर में जमींदर हीरानन्द के यहां बाबा बैजनाथ का जन्म शरदपूर्णिमा के दिन सन 1833 में हुआ था।
इसके बाद उन्होंने श्री सियपिय केलि कुंज रामकोट अयोध्या के संस्थापक सिद्धसंत फकीरे राम के पास शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। मानपुर में श्रीराम जानकी ठाकुरद्वारा मन्दिर का निर्माण कराया तथा श्री रामलीला प्रारम्भ कराई। गुरू फकीरे राम के स्वर्गवास के बाद उत्तराधिकारी शिष्य के रूप में बाबा बैजनाथ श्री सिय पिय केलि कुंज रामकोट अयोध्या में निवास करते हुए भजन-कीर्तन व साहित्य साधना में रत हो गए।
यहां पर उनकी रचनाएं आदि भी चौखटों पर दर्ज है। उन्हें संस्कृत, अवधी, ब्रज व हिन्दी भाषाओं के साथ ही ज्योतिष का ज्ञान था। उन्होंने भक्तिशास्त्र, ज्योतिष, उपनिषद आदि का गहन अध्ययन किया। वैशाख शुक्ल सात वि0 संवत 1954 को मध्य प्रदेश के दतिया में राजा के यहां प्रवास के दौरान संतकवि बैजनाथ जी का स्वर्गवास हुआ।
रामकथा के विद्वान व हिंदी की साहित्यिक सेवाओं का मूल्यांकन कर ब्रिटिश सरकार ने सन 1889 के करीब संत कवि बाबा बैजनाथ कुर्मी को महामहोपाध्याय उपाधि से नवाजा था। बाराबंकी शहर के छाया चौराहे पर संतकवि बैजनाथ जी के नाम से उद्यान स्थापित हुआ। जिसका लोकापर्ण सन् 1995 में तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने किया। वहीं मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने कार्यकाल में हरख में स्थापित राजकीय महाविद्यालय का नामकरण भी संत कवि बाबा बैजनाथ राजकीय महाविद्यालय के नाम से किया।
छह मौलिक समेत 24 पुस्तकों की रचना
रामकथा के महान भाष्यकार संत कवि बाबा बैजनाथ ने छह मौलिक समेत 24 पुस्तकों की रचना की। उनकी पहली मौलिक कृति श्री सीताराम संयोग पदावली जुलाई 1880 ई0 को प्रकाशित हुई। वहीं नख-शिख वर्णन मई 1913 को प्रकाशित हुई। उन्होंने तुलसीकृत कवितावली सटीक, तुलसी-सतसई सटीक, गीतावली सटीक, रामचरित मानस सटीक, विनय-पत्रिका सटीक, छन्दावली-रामायण सटीक, छपपय-रामायण सटीक, बरवै-रामायण सटीक, वैराग्य-सन्दीपनी सटीक, जानकी-मंगल सटीक, रामलला नहछूर, हनुमान-बाहुक सटीक, हनुमन्नाष्टक सटीक, कुण्डलिया-रामायण सटीक, श्री रामाज्ञा-प्रश्न सटीक, श्री रामनाम कलामणि कोष मंजूसा सटीक, अध्यात्म-रामायण सटीक (वेदव्यास कृत), मौलिक में श्री सीताराम पावस विलास, षडऋतु वर्णन, नख-शिख वर्णन आदि लिखीं, जिनमें से कुछ उनके समय एवं कुछ उनके बाद समयांतराल में प्रकाशित हुईं। वहीं काव्य कल्पदु्रम, लीला-प्रबंध तथा महर्षि बाल्मीकि कृत बाल्मीकि-रामायण सटीक अप्रकाशित हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं।
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