पीलीभीत: जेल में पहले से बंद थे टाडा बंदी, कुछ दिन तन्हाई में रखे गए कारसेवक... फिर सेंट्रल जेल बरेली कर दिया रेफर

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Published By Vikas Babu
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वैभव शुक्ला, पीलीभीत। अयोध्या के भव्य श्रीराम मंदिर में 22 जनवरी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चल रही तैयारियां अस्सी-नब्बे के दशक की यादें ताजा कर गई हैं। जिस तरह से उस वक्त घर-घर श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़कर राम ज्योति पहुंचाई  गई थी। वर्तमान में पूजित अक्षत पहुंचाए जा रहे हैं।  उस वक्त की तरह इस बार भी प्राण प्रतिष्ठा का दिन भव्य दिवाली की तरह ही मनाने की अपील संघ, विहिप समेत अन्य संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता कर रहे हैं। माहौल भी रामलहर जैसा ही बन चुका है।

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श्री राम जन्मभूमि के दौरान नब्बे के दशक की बात करें तो तराई के कारसेवकों का बलिदान भी कम नहीं रहा।  उस दौरान में पीलीभीत की जेल में कई टाडा बंदी पहले से बंद थे। इस वजह से जेल प्रशासन सुरक्षा बंदोबस्त को लेकर भी काफी सख्त था।  छह दिसंबर 1992 को कारसेवा के लिए पीलीभीत से बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या गए थे। उत्तर प्रदेश में उस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। 

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लालकृष्ण आडवाणी के साथ वीके गुप्ता (फाइल फोटो)

सुबह से लेकर शाम तक वह अयोध्या में ही मौजूद रहे। दिन भर चली कार सेवा के बाद गिरफ्तारियां शुरू हो चुकी थी। पीलीभीत से कार सेवा में गए कारसेवक भी वापसी करने लग गए गए थे। बताते हैं कि दूसरे दिन सात दिसंबर 1992 को अधिकांश कार सेवक पीलीभीत अपने घरों को आ गए थे।  भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त की जा चुकी थी और पीलीभीत में माहौल खराब न हो इसके लिए प्रशासन धरपकड़ करने में जुट गया था। 

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नब्बे के दशक में श्रीराम मंदिर आंदोलन के दौरान यात्रा (फाइल फोटो)

कार सेवकों को चिन्हित करते हुए उनके घरों पर दबिश दी गई।  कई कार सेवकों को पुलिस ने धर लिया। अधिकांश घरों से ही पकड़े गए थे। जिसमें पीलीभीत जिले में भाजपा व आरएसएस के भीष्म पितामह कहे जाने वाले मोहल्ला खुशीमल निवासी बाबू वीर  सिंह,  पूर्व विधायक वीके गुप्ता, ,बृज स्वरुप मिश्र, धीरेंद्र मिश्र एडवोकेट आदि थे। करीब दर्जन भर लोगों पर शांति भंग की आशंका में कार्रवाई कर दी गई। 

पीलीभीत जिला जेल भेज दिया गया।  बताया जाता है कि उस टांडा बंदियों के होने के चलते इन सभी को तन्हाई में रखा गया। तन्हाई की क्षमता से दोगुना कारसेवक उसमें रखे गए। यहां तीन से चार दिन रहे। फिर जेल में ही इसके विरोध में आंदोलन छेड़ दिया गया।  इसके बाद  सभी बंदी बनाए गए कार सेवकों को केंद्रीय कारागार बरेली शिफ्ट करा दिया गया। पखवाड़ा भर जेल में रहने के बाद सभी की रिहाई हो सकी थी।  

बैठक के बुलावे की बात कहकर ले गई थी पुलिस
बताते हैं कि छह दिसंबर 1992 के घटनाक्रम के बाद वापस घर पहुंचे कार  सेवकों के घरों पर जब पुलिस की दबिश दी गई। उस वक्त अधिकांश को पहले गिरफ्तारी और आगे की कार्रवाई से अंजान रखा गया था। पूछने पर यह कह दिया था कि शांति व्यवस्था बनाए  रखने के लिए कोतवाली में बैठक बुलाई गई है।  सभी पुलिस के साथ ही चले गए। 

इसके बाद उन  पर शांतिभंग की आशंका में कार्रवाई कर दी गई। जिला कारागार और फिर सेंट्रल जेल बरेली में करीब पखवाड़ा भर का समय बिताना पड़ा था।  बाबू वीर सिंह, वीके गुप्ता, बृज स्वरूप मिश्रा आदि का निधन हो चुका है। धीरेंद्र मिश्र एडवोकेट वर्तमान में जिला संयुक्त बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं।  

मुस्लिम पक्ष से भी बंद हुए थे कई लोग
शांतिभंग की आशंका में हुई कार्रवाई सिर्फ एक पक्ष पर उस वक्त नहीं की गई थी। कार सेवकों के अलावा मुस्लिम पक्ष से भी गिरफ्तारियां पुलिस द्वारा की गई थी। जिसमें हाजी रियाज अहमद, हारुन अहमद  समेत कई लोग थे। उनको भी  जेल भेजा गया था।  बताते हैं कि इन्हें भी पखवाड़ा भर जेल में रखने के बाद ही रिहाई मिल सकी थी।

तत्कालीन मंत्री रामसरन वर्मा ने भी संभाली थी व्यवस्थाएं
तत्कालीन बीसलपुर विधायक रामसरन वर्मा छह दिसंबर 1992 के घटनाक्रम के वक्त प्रदेश सरकार में मंत्री थे। बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर स्थल पहुंचकर पीलीभीत से गए कारसेवकों के ठहरने ,भोजन एवं जलपान आदि की पूरी व्यवस्था की गई थी। वह भी अयोध्या में ही मौजूद रहे। सुबह से लेकर शाम तक वह मौजूद रहे। इसके अलावा पूर्व सांसद स्व.परशुराम गंगवार भी अयोध्या गए थे।

उस वक्त मेरी उम्र सात से आठ वर्ष रही होगी। मगर राम जन्मभूमि आंदोलन के बारे में पिता से काफी कुछ पता लगता रहा। छह दिसंबर 1992 के लिए जब कार  सेवा करने के लिए पिताजी अयोध्या गए थे। तो एक दिन पहले अपने एक करीबी मित्र गोविंद राम की बहन के घर पर ही फैजाबाद में रुके थे।  उस वक्त वहां पर राम भक्तों की सेवा के लिए हर कोई जुटा हुआ था। 

दूसरे दिन वापस आ गए थे। फिर गिरफ्तारी हुई। पीलीभीत जेल के बाद बरेली और फिर उन्हें बदायूं रखा गया था। घटनाक्रम के दिन पिता मुरली मनोहर जोशी के साथ मंच पर ही थे। इस आंदोलन के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी समेत कई बड़े नेताओं के साथ पिताजी शामिल रहे थे--- अंकुर गुप्ता, पूर्व विधायक वीके गुप्ता के बेटे।

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