बदायूं: जमीन की नमी सोख रहा यूकेलिप्टस, खेतों को किया बंजर

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Published By Vikas Babu
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फोटो- खेत की मेड़ पर खड़े यूकेलिप्टस के पेड़।

केपी शर्मा, बदायूं। 1980 के दशक से शुरू हुई यूकेलिप्टस ने धरती की कोख को जल विहीन बना दिया। जिससे एक ओर तो वाटर लेवल नीचे चला गया तो वहीं जिले में हजारों हेक्टेयर भूमि बंजर और ऊसर हो गई। यूकेलिप्टस लगाने के दुष्परिणाम सामने आए तो सरकार ने भी इसकी पौध तैयार नहीं करने की हिदायत दी, तो किसानों ने भी अपने खेतों में यूकेलिप्टस लगानी बंद कर दी।

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सोशल मीडिया फोटो

1980 के दशक में यूकेलिप्टस लोगों ने पहली बार देखी थी। तब इसको राजकीय पौधशालाओं में तैयार किया गया। राजकीय पौधशालाओं में यूकेलिप्टस तैयार होने के बाद निजी पौधशाला में भी इसकी पौध तैयार करने लगीं थी। धीरे धीरे यूकेलिप्टस जिले भर में खेत खलिहानों मैदानों, स्कूल कॉलेजों, सड़क किनारों पर देखने को मिल रही थी।

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बंजर जमीन(सोशल मीडिया फोटो)

यूकेलिप्टस लगाने वाले किसानों ने अपने खेतों की मेड़ों पर लगाई। उसके बाद 90 के दशक तक यूकेलिप्टस हर जगह दिखाई देने लगी। यूकेलिप्टस का पौधा चार से लेकर पांच साल में तैयार हो जाता है। इस पौधे को ऊंचे दामों पर बेचा गया। करीब 2000 के बाद यूकेलिप्टस ने ऐसी पकड़ बनाई कि लोग अन्य पौधे लगाना ही भूल गए।

कहीं भी देखो यूकेलिप्टस ही नजर आती थी। यूकेलिप्टस लगाने का एक फायदा यह था कि किसान को पांच साल में हजारों की आय हो जाती थी। इसका पौधा तेजी से ग्रोथ करता है और पांच साल में एक दरख्त बन कर तैयार हो जाता है जो दस से पन्द्रह हजार में आसानी से बिक जाता है।इसकी लकड़ी से फर्नीचर बन कर बड़े बड़े शोरूम की शोभा बढ़ाता है। आज भी इसका फर्नीचर हर जगह मिल रहा है।

2010 के बाद जब वाटर लेवल नीचे गिरता चला गया तो वैज्ञानिकों ने मंथन शुरू किया। जिसमें पाया गया कि यूकेलिप्टस का एक पौधा हर रोज कम से कम 50 लीटर पानी सोखता है। यूकेलिप्टस के पेड़ के आस पास कोई फसल नहीं होती है। इसके पौधे की छांव में कुछ नहीं होता है। किसानों के अनुसार यूकेलिप्टस के पेड़ के आस पास कुछ भी नहीं होता है, क्योंकि यूकेलिप्टस का पेड़ अपने आस पास की नमी को सोखता है।

पेड़ के आस पास की जमीन बंजर हो जाती है, ऊसर हो जाती है। इस जमीन पर सालों तक कुछ नहीं होता है। पेड़ को काटने के बाद करीब पांच साल तक उस जगह पर बहुत कम पैदावार होती है। जब वहां का वाटर लेवल सामान्य हो जाता है तो जमीन पर फसल तैयार होती है।

जिले में कुछ निजी पौधशालाओं में आज भी यूकेलिप्टस की पौध तैयार की जा रही है। जो सड़कों के इर्द गिर्द लगाई जा रही है। निजी पौधशालाओं में भी कम मात्रा में इसकी पौध मिल रही है। गंगा नदी एवं पोखरों के आस पास कुछ लोग इसकी पौध लगा रहे हैं। हालांकि कानून वहां पर लगाना भी गलत है फिर भी लोग स्वार्थवश कुछ जगहों पर लगा रहे हैं।

यूकेलिप्टस का एक पौधा हर दिन 50 लीटर पानी सोखता है। जिससे धरती की कोख जल विहीन होती जा रही है। यूकेलिप्टस के पेड़ के कारण ही आज वाटर लेवल काफी नीचे पहुंच गया है। इसलिए राज्य सरकार ने राजकीय पौधशालाओं में इसकी पौध तैयार न करने की हिदायत दी है। आज किसी नर्सरी में यूकेलिप्टस की पौध देखने को नही मिल रही है। यूकेलिप्टस के कारण ही आज लिले में 70 हजार हेक्टेयर भूमि ऊसर, बंजर और बीहड़ हो चुकी है। इस भूमि पर खेती नहीं हो रही है। यूकेलिप्टस के कारण खेतों में नमी कम समय रहती है। इसके दुष्परिणाम सामने आने पर अब किसान भी उसको नहीं लगा रहे हैं। जमीन के अंदर गिरता जल स्तर रोकने को यूकेलिप्टस को खत्म किया जा रहा है। यूकेलिप्टस से अब हर किसी को मोहभंग हो चुका है---सतीश चंद्र यादव- भूमि संरक्षण अधिकारी।

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