गोंडा: राम के होकर भी अयोध्या के नहीं बन पाए तुलसी, इतिहासकारों, क्षद्म विचारों के अंतरद्वंद में 700 सालों से फंसे हैं TULSIDAS

गोंडा: राम के होकर भी अयोध्या के नहीं बन पाए तुलसी, इतिहासकारों, क्षद्म विचारों के अंतरद्वंद में 700 सालों से फंसे हैं TULSIDAS

अरुण कुमार मिश्र, गोंडा। देश दुनिया में राम की अयोध्या का उल्लास है। 22 जनवरी को भगवान राम अपने मूल दरबार में विराजमान भी हो जाएंगे। परंतु राम के तुलसी राम मय होते हुए भी अयोध्या के नहीं बन पाए। ऐसा मतांतरों व क्षद्म विचारों के कारण हुआ है जिससे तुलसी की धरती कराह रही है।

15वीं शताब्दी में जब मुगल आक्रांताओं का बोलबाला था और धर्म तथा न्याय व्यवस्था बेपटरी हो गई थी तब हुलसी के सुत तुलसी ने अयोध्या की 84 कोसी आध्यात्मिक परिधि में जन्म लेकर भगवान श्रीराम को पुन: प्राख्यापित किया था। विनय पत्रिका में उन्होंने घुर्घुर शब्द यानि घाघरा का प्रयोग किया है। संगम व त्रिमुहानी का प्रयोग किया है।

राम लला नहछू में गोंडा की मांगलिक गारी लिखी है जिससे प्रमाणित होता है कि अयोध्या के समीप ही तुलसी का जन्म हुआ होगा। लेकिन अपने जन्म काल व स्थान पर तुलसी ने कुछ नहीं कहा है। इसी का लाभ उठाते हुए क्षद्म विचारों ने उन्हें कहीं का नहीं रखा। मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास की रचना को लोगों ने स्वीकार किया पर उनके जन्म पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार जता दिया।

श्री लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं शोध केंद्र के निदेशक प्रोफेसर शैलेंद्र नाथ मिश्र कहते हैं कि अब तक साहित्यकारों ने जिन जिन स्थानों को प्रमाणित करने की कोशिश की है वह सिद्ध नहीं हो पाए। लेकिन जो प्रमाण गोंडा के पसका संगम त्रिमुहानी तट एवं राजापुर गांव से लेकर उनके बहराइच स्थित ननिहाल दधिबल तक मिले हैं वे अकाट्य हैं। जिस तरह कुछ राजनीतिक लोगों ने भगवान राम को अयोध्या का नहीं माना था और अयोध्या को काल्पनिक कहा था आज उसी तरह पसका संगम त्रिमुहानी घाट को भी काल्पनिक मानते हैं।

गोस्वामी तुलसी दास पर शोध करने वाले डा श्री नरायन तिवारी कहते हैं कि यह प्रमाणित है कि तुलसी के गुरु नरहिरदास का आश्रम पसका सरयू संगम तट पर था। उन्होंने सवाल उठाया कि मात्र पांच वर्ष की आयु में राम बोला यानि तुलसीदास अयोध्या कैसे पहुंचे और गुरु से कैसे मिले। वह कहते हैं कि राम बोला बचपन में ही अनाथ हो गए थे और लोगों ने गुरु नरहरि दास के आश्रम पहुंचाया था। गुरु ने उन्हें अयोध्या ले जाकर दीक्षा दी और उनका मार्गदर्शन किया।

तुलसीदास जी ने अपने जीवनकाल में देश के विभिन्न स्थानों पर गए थे यह सत्य है पर उनका जन्म पसका सूकर खेत में ही हुआ था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी पसका सूकर खेत को ही राम के तुलसी का जन्मस्थान माना है। इसके अलावा कई मूर्धन्य साहित्यकारों ने स्वीकार किया है। प्रोफेसर शैलेंद्र नाथ मिश्र कहते हैं कि गोंडा में सैकड़ों सालों से सरयू पारीण ब्रह्मण कुलों में श्रावण शुक्ल को मनाया जाता है। साहित्यकारों की रचना व मतांतरों की परवाह किए तुलसी अयोध्या के पसका संगम सूकर खेत के ही हैं। इस पर अभी और संघर्ष करने की जरूरत है।

विद्यार्थियों में आज भी है उहापोह की स्थिति

प्रोफेसर शैलेंद्र नाथ मिश्र कहते हैं कि विद्यार्थियों को तुलसीदास जी की जीवनी के बारे में आज तक सही उत्तर नहीं मिल पाया। साहित्य के छात्र-छात्राओं में आज तक यह उत्कंठा है कि तुलसीदास जी का जन्म कहां हुआ था। प्रतियोगी परीक्षाओं में वे इसे उद्धृत करने में विफल हो जाते हैं।

84 कोसी परिक्रमा मार्ग से भी काट दिया तुलसी का गांव

अयोध्या की शास्त्रीय सीमा के अंतर्गत मानस रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी का गांव राजापुर भी है। इसके साथ पवित्र जंबू तीर्थ भी इसी के अंतर्गत है। पसका सूकर खेत व घाघरा-सरयू का संगम भी इसी के अंतर्गत आता है। इसीलिए वर्षों से 84 कोसी परिक्रमा के पथ पर चलते आए साधु संतों ने तुलसी जन्मभूमि की परिक्रमा की।

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लेकिन जब आज 84 कोसी परिक्रमा का निर्माण हो रहा है तो इन तीन क्षेत्रों को काट दिया गया जिसकी लड़ाई संत महात्मा कर रहे हैं। रविवार को अयोध्या से संतों की यात्रा घाघरा पार कर तुलसीधाम पर पहुंची तो उनका भव्य स्वागत किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री के दरबार तक लोग मांग कर रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

तुलसी जन्म के लिए हैं अकाट्य प्रमाण

तुलसीपीठ पसका सूकर खेत के पीठाधीश्वर डा. भगवदाचार्य कहते हैं कि वर्षों से तुलसी जन्म के साक्ष्य एकत्र किया गया है। हजारों वर्षों से पसका सूकर खेत, जंबू दीप और त्रिमुहानी तट पर पूजा होती है। हजारों सालों से साधु संत लघु प्रयाग के नाम से विख्यात पसका स्थित सरयू-घाघरा संगम तट पर रेती में कल्पवास करते हैं। पौष माह में एक माह तक कल्पवास करने के बाद सभी साधु संत प्रयाग के लिए प्रस्थान करते हैं और लघु प्रयाग के बाद प्रयाग में संगम तट पर एक माह तक कल्पवास करते हैं। पसका संगम का पौराणिक महत्व है।

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