नोटिस तामील करने के नियम में कमी का हवाला देते हुए भरण- पोषण के एकपक्षीय आदेश को हाईकोर्ट ने किया रद्द

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण- पोषण के एक मामले में अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, आगरा द्वारा पारित भरण-पोषण के एक पक्षीय आदेश और परिणामी वसूली वारंट को इस आधार पर रद्द कर दिया है कि पति को नोटिस/समन की सेवा के तरीके का उल्लेख नहीं किया गया था। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकलपीठ ने ललित सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। 

संशोधनवादी(पति) का दावा है कि उसे विपक्षी द्वारा शुरू की गई रखरखाव कार्यवाही के बारे में पता नहीं था, क्योंकि पार्टियों के बीच विवाद समझौते के द्वारा सुलझा दिया गया था। उक्त रखरखाव कार्यवाही की नोटिस उसे दी ही नहीं गई। गौरतलब है कि पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का मामला दायर कर अपने और अपने नाबालिग बेटे के लिए भरण-पोषण की मांग की।

अतः पति को पत्नी और नाबालिग बेटे के भरण-पोषण के लिए प्रति माह 15,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। इस संदर्भ में पति को नोटिस जारी किया गया, लेकिन वह उपस्थित नहीं हुआ और एक पक्षीय आदेश पारित कर दिया गया। चूँकि पति ने उपरोक्त राशि का भुगतान नहीं किया, इसीलिए भरण-पोषण की बकाया राशि के रूप में 2,52,000/- रुपये के लिए पत्नी द्वारा दायर एक आवेदन पर वसूली वारंट जारी किया गया। हालांकि पति के अधिवक्ता ने सीआरपीसी की धारा 125(4) का हवाला देते हुए कहा कि पर्याप्त कारण के बिना रहने से इंकार करने वाली पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है।

अंत में कोर्ट ने भरण-पोषण के एकपक्षीय आदेश को इस शर्त के साथ रद्द कर दिया कि पति उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार निचली अदालत में राशि जमा करेगा। चूंकि पति ने हलफनामे में कहा था कि उसे आदेश के बारे में पहली बार तब पता चला, जब उसके खिलाफ वसूली वारंट जारी किया गया था, अदालत ने उसे निचली अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दे दी।

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