चिंता का विषय

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
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संसद के बाहर और भीतर जो कुछ हो रहा है, चिंता का विषय है। संसद की सुरक्षा में चूक के मुद्दे पर गृहमंत्री के बयान की मांग कर रहे विपक्षी सदस्यों के हंगामे की वजह से मंगलवार को भी सदन की कार्यवाही बाधित हुई। कांग्रेस ने कहा कि यह विडंबना है कि लोकसभा में दर्शक दीर्घा से कूदने वाले व्यक्तियों को प्रवेश दिलाने में मददगार रहे सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन दोनों सदनों में गृहमंत्री के बयान की मांग करने वाले विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया।

78 विपक्षी सदस्यों को संसद से निलंबित किए जाने के एक दिन बाद कार्यवाही में बाधा डालने के लिए मंगलवार को 49 लोकसभा सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया, जो एक ही दिन में सबसे अधिक संख्या में निलंबन है। इस कार्रवाई के बाद गुरुवार से दोनों सदनों से निलंबित विपक्षी सांसदों की कुल संख्या 141 हो गई है।  

‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ के अनुसार संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे अधिक सदस्यों का निलंबन 1989 में हुआ था, जब सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर एमपी ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने 63 सदस्यों को निलंबित कर दिया था।

वर्ष 2004 से 2014 की दो लोकसभाओं के दौरान सत्तारूढ़ दल के सांसदों (जिसमें बागी भी शामिल हैं) को भी अनुशासनहीनता के लिए निलंबित किया गया था , लेकिन 2014 से केवल विपक्षी सांसदों पर निलंबन की गाज गिरी है। लोकसभा की आचरण संबंधी नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि संसद में सदस्यों की नारेबाजी प्रतिबंधित है। इस हकीकत से सभी सदस्य वाकिफ हैं। इसके बावजूद जनप्रतिनिधि अपने आचरण से निराश करते हैं।

उधर संसद के दोनों सदनों से निलंबित किए गए विपक्षी सांसदों ने आज संसद परिसर में प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान राज्यसभा के एक सदस्य ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल करके उपहास उड़ाया। बाद में उपराष्ट्रपति ने संवैधानिक संस्थाओं पर अनुचित टिप्पणियां करने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए हमें संवैधानिक पदाधिकारियों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए।

 यानि सत्ता-पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से हंगामे और निलंबन के जरिए दूसरों को दबाने की आदत कार्यवाही में हावी हो चुकी हैं। संसदीय जीवन में सर्वोच्च परंपरा को बनाए रखने के लिए जनप्रतिनिधियों से सदन के भीतर व बाहर दोनों जगह आचरण के कतिपय मानकों का पालन किए जाने की अपेक्षा की जाती है। 

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