कार्बन सीमा कर गलत
जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या है जिसके वैश्विक समाधान की आवश्यकता है, परंतु इसके लिए जलवायु न्याय का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। विकसित देशों ने सदियों से प्रदूषण फैलाया है। उन्होंने अपनी आय और प्रौद्योगिकी के वर्तमान स्तर तक पहुंचने के लिए विकासशील दुनिया के संसाधनों का उपनिवेशीकरण किया। जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में यह क्षतिपूर्ति का समय होना चाहिए। दोनों ही मोर्चों पर आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) से जुड़े देश अपने वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं।
अन्यायपूर्ण बात यह है कि अब दूसरे पक्ष से भुगतान करने के लिए कहा जा रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वैश्विक आर्थिक नीति मंच 2023 में गुरुवार को कहा कि विकसित देशों द्वारा अपनी हरित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए सीमा पार समायोजन कर लगाने का कोई भी कदम नैतिक रूप से सही नहीं है और यह ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों के हितों के खिलाफ है।
ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है, ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित है। वित्त मंत्री की यह टिप्पणी यूरोपीय संघ द्वारा कुछ क्षेत्रों से आयात पर कार्बन कर लगाने की घोषणा की पृष्ठभूमि में आई है।
हाल में यूरोपीय संघ ने कुछ सेक्टरों से आयात पर कार्बन कर लगाने की घोषणा की थी। कार्बन कर एक तरह का आयात शुल्क है, जो एक जनवरी 2026 से लागू होगा। इसके तहत इस साल 1 अक्टूबर से इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, एल्यूमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पादों समेत सात कार्बन केंद्रित क्षेत्रों की घरेलू कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन के संबंध में आंकड़े यूरोपीय संघ के साथ साझा करने की बात कही गई है और सात कार्बन-सघन क्षेत्रों की घरेलू कंपनियां यूरोपीय संघ के साथ कार्बन उत्सर्जन के संबंध में डेटा साझा कर रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन सीमा कर संग्रहण की योजना भारत की निर्यात लागत को बढ़ा सकती है। भारत की छोटी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है,जैसा कि वर्ष 2006 में भी हुआ था। जब यूरोपीय संघ ने रासायनिक आयात को विनियमित करने के लिए एक कठोर व्यवस्था लागू की थी।
भारत को एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की तलाश कर यूरोपीय संघ के बाजार पर निर्भरता कम करनी चाहिए। यह एक उपयुक्त रणनीतिक प्रतिक्रिया होगी। वास्तव में यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर अन्यायपूर्ण है। भारत को इस मुद्दे पर अन्य ब्रिक्स देशों के साथ साझा मुद्दा बनाना चाहिए और इसे वैश्विक मंच पर उठाना चाहिए।
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