भीमताल: ये तितली नहीं उल्लू पतंगा है जनाब...क्यों चौक गए न...!
राकेश सनवाल, भीमताल, अमृत विचार। क्या अपने आसपास चक्कर लगा रही किसी तितली को गौर से देखा है यदि नहीं तो अब देखिएगा क्योंकि यह उल्लू पतंगा भी हो सकता है। यह साधारण पतंगा है जो बहुत अधिक संख्या में पाया जाता है। भारत में उल्लू तितली नहीं उल्लू पतंगा (इरीबस मैकरोप्स ) पाया जाता है। इसके पंखों को अगर गौर से देखेंगे तो उसे पर उल्लू की आकृति नजर आएगी।
इसके पंख पर बने धब्बे हूबहू उल्लू के समान होते हैं। आमतौर पर 2500 मीटर तक की ऊंचाई पर यह पतंग पाया जाता है। इस पतंगे की लगभग 25 प्रजातियां पाई जाती हैं। सेब और आम में जो काले धब्बे दिखाई देते हैं इसी पतंगे की देन है। क्यों यह उल्लू पतंगा फल में छेद कर उसका जूस पीता है ।
भीमताल में भी इस प्रकार के पतंगे देखे जा रहे हैं। कीट-पतंग विशेषज्ञ और बटरफ्लाई शोध संस्थान के निदेशक पीटर स्मैटाचैक बताते हैं तितली और पतंग मनुष्य द्वारा प्रकृति पर थोपे गए शब्द हैं। अवगत कराते हैं कि तितली और पतंग एक ही ग्रुप (लैपिडाप्टरा ) में रखे गए हैं।
प्रारंभ में रंगीन लैपिडाप्टरा को तितली कहा गया और धीरे-धीरे जब यूरोप से बाहर एशिया अमेरिका अफ्रीका आदि देशों में कीटों की पढ़ाई प्रारंभ हुई तो पता चला कि कुछ अति रंगीन पतंगे भी थे और अति बद्दी तितली भी मौजूद थी। बाद के दिनों में दिन में उड़ने वाले को तितली और रात में उड़ने वाले को पतंगा कहा जाने लगा। शोध में पाया गया कि बीस हजार से अधिक प्रजाति के पतंगे दिन में उड़ते हैं उन्होंने बताया कि जिनके एंटीना गद्दे की तरह सूजे होते हैं उनको तितली तथा बाकी सारे पतंगे कहलाए जाते हैं।
किसानों के लिए मुसीबत है पतंगे
भारत में पाए जाने वाले यह पतंगे फलों में छेद कर उसका रस चूस लेते हैं इससे फल दागी हो जाते हैं। इंग्लैंड में इससे परेशान फल उत्पादक कच्चे फलों को पॉलिथीन में बांध कर बचाते हैं। कीट पतंग विशेषज्ञ पीटर स्मैटाचैक बताते हैं कि ब्राजील आदि देशों में तितलियों को बड़े पैमाने पर पाला जाता है उनके पंख से सजावटी सामान जैसे लॉकेट, रिंग, चूड़ी, आदि बनाकर आय की जाती है।
