बरेली: महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमाएं जर्जर हाल में, किसी का नहीं ध्यान
बरेली, अमृत विचार। ये तस्वीरें सिर्फ एक दिन का सच हैं... वह भी अधूरा। असल तस्वीर कुछ और है जो साल भर गलियों-सड़कों, मोहल्लों और नुक्कड़-चौराहों पर दिखती है और लोगों के जेहन पर हर वक्त चस्पा रहती है। साल में एक दिन हाथों में झाड़ू उठाकर फोटो खिंचाना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका हो सकता है लेकिन लोगों का मानना है कि इतने भर से हालात बदलने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।
क्योंकि सभी जानते हैं कि यह रस्म अदायगी भर है। इसका उस इच्छाशक्ति से कोई वास्ता नहीं है जो स्वच्छता के लिए स्थाई तौर पर जरूरी है। अगर ऐसा न होता तो अफसर और जनप्रतिनिधि अपनी वे जिम्मेदारियां जरूर पूरी कर रहे होते जो इस शहर को साफसुथरा रखने के लिए जरूरी हैं।
गांधी पार्क: कहीं सफाई, कहीं अनदेखी
राज्य सरकार के आदेश पर लंबे समय बाद इस बार नगर निगम के अफसरों को उन पार्कों की सुध लेने का ख्याल आया जहां महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमाएं लगी हैं। फिर भी कुछ ही जगह प्रतिमाओं की सफाई कराई गई, कुछ को यूं ही छोड़ दिया गया।
स्वतंत्रता सेनानी पार्क में लंबे समय बाद सफाई
सुरेशशर्मा नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पार्क में महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमाएं हैं। पिछले साल पार्क के आसपास जलकुंभी उगने का मामला सुर्खियों में आया था। इस बार यहां प्रतिमाओं और भवन पर रंगाई-पुताई तो करा दी गई लेकिन छत पर आई दरार को ठीक नहीं कराया। खुले में लगी शास्त्री जी की प्रतिमा के आसपास गाय-भैंसों का झुंड बैठा मिला।
जोगीनवादा पार्क में बापू की प्रतिमा पर काई
जोगीनवादा में संगम अस्पताल के सामने स्थित पार्क में लगी महात्मा गांधी की मूर्ति पर काई जम गई है। लोगों ने बताया कि इस पार्क पर कोई ध्यान नहीं देता। महात्मा गांधी की मूर्ति का चश्मा भी गायब है। प्रतिमा के इर्दगिर्द पुरानी मूर्तियां रख दी गई हैं।
बिहारीपुर कसगरान में चंदे से रखरखाव
बिहारीपुर कसगरान में भी गांधी जी की प्रतिमा एक छोटे से भवन में स्थापित है जो काफी जर्जर हो चुका है। प्रतिमा जिस प्लेटफार्म पर स्थापित है, वह भी दरक रहा है। इलाके के लोग ही आपस में चंदा इकट्ठा कर जरूरत पड़ने पर मरम्मत कराते हैं।
लोगों ने कहा- दिखावा है ये
दो अक्टूबर या किसी और विशेष दिन पर ही अधिकारियों को पार्कों की बदहाली नजर आती है। बाकी साल किसी को होश नहीं रहता। यही दिखावा हमारे देश का दुर्भाग्य है। - रमेश कश्यप, जोगीनवादा
भवन जर्जर है, कई बार निगम और प्रशासन के अधिकारियों को सूचित किया है। आठ-दस सालों से हम लोग खुद ही चंदा इकट्ठा करके भवन में जरूरत लायक मरम्मत कराते हैं। - लालाराम, बिहारीपुर कसगरान
ये भी पढे़ं- बरेली: आंवला चेयरमैन को पत्र भेजकर धमकी, 15 दिन में नहीं दिया इस्तीफा तो कर देंगे हत्या
