अलगाव की स्थिति में साथी की स्वतंत्रता और गरिमा की सुरक्षा सुनिश्चित करने को न्यूनतम राशि प्रदान करना पर्याप्त : HC
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण- पोषण के एक मामले की सुनवाई के दौरान अपनी विशेष टिप्पणी में कहा कि जब तक विवाह जीवित रहता है, तब तक कमाने वाले पति या पत्नी का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे साथी की स्वतंत्रता, जीवन और गरिमा की रक्षा करे। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार (चतुर्थ)की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 24 के तहत पारिवारिक न्यायालय, झांसी द्वारा 7000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण देने के आदेश को चुनौती देते हुए संतोष कुमार द्वारा दाखिल प्रथम अपील पर सुनवाई करते हुए की।
अपीलकर्ता के अधिवक्ता का तर्क था कि उसका वेतन 16,500 है। जिला अदालत ने भरण-पोषण राशि तय करने में न्यायोचित सिद्धांतों का पालन नहीं किया है। उक्त दंपति की कोई संतान नहीं है, यह देखते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकला कि जिला अदालत ने अपीलकर्ता की कुल मासिक आय का लगभग 50% अंतरिम रखरखाव के रूप में देने का अनुचित आदेश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अलगाव की स्थिति में पत्नी के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम राशि प्रदान करना पर्याप्त है। कोर्ट ने आवेदन दाखिल करने की तारीख से पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के लिए 5000 रुपए प्रति माह देना न्यायोचित में माना।
हालांकि कोर्ट ने एक मुश्त कानूनी खर्चों और दैनिक व्यक्तिगत खर्चों के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता के भुगतान की समय सीमा के संबंध में कुछ अन्य निर्देश भी जारी किए।
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