नैनीताल: क्या कहा... आपने आज तक चखा ही नहीं 'पांगर' ...ये तो बड़ा फायदेमंद है! 

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Published By Bhupesh Kanaujia
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नैनीताल , अमृत विचार। इंग्लैंड,अमेरिका समेत दक्षिण पूर्वी देशों में पाया जाने वाला चेस्टनट यानी पांगर इन दिनों धारी, रामगढ़,पदमपूरी,ज्योलिकोट के खेतो में लदे हुए हैं। जिनकी इन दिनों भारत के बाजरो में तेजी से मांग बढ़ रही है।

इंग्लैंड,अमेरिका में किसानो की आर्थिक स्थिति मजबूत करने वाले चेस्टनट की खेती अब नैनीताल के मुक्तेश्वर,धारी,ज्योलिकोट समेत आसपास के गांव में हो रही है। जिससे अब गांव के काश्तकारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधर रही है। पदमपुरी गांव में पांगर की खेती कर रहे काश्तकार देवदत्त जोशी बताते हैं की इन दिनों पांगर कि भारतीय बाजारों में तेजी से मांग बड़ी है।

गांव के खेतों से ही पांगर करीब 150 रुपये किलो तक बिक रहा है। वहीं गोविंद बल्लभ, लाखन मेहरा बताते हैं सितंबर में पांगर जमा करने का सीजन शुरू होता है। बड़े शहरों से लेकर विदेशों तक इसकी काफी मांग है। धारी के ही किसान प्रकाश सती बताते हैं की उन्होंने पहली बार पांगर की नर्सरी तैयार की जिसके बाद से क्षेत्र में चेस्टनट का कारोबार बड़ा। नर्सरी से उन्होंने एक पौधा सौ रुपये तक बेचते हैं।

इंग्लैंड से अंग्रेज लाए थे चेस्टनट के पेड़ नैनीताल

कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. ललित तिवारी बताते हैं की पहाड़ो में ब्रिटिश समय में अंग्रेज इसके पौधे अपने साथ लाए थे और हिमालयी इलाकों में रोपा। यह फल अब भी स्थानीय लोगों की आजीविका का जरिया बना हुआ है। अंग्रेजों ने नैनीताल, रामगढ़, मुक्तेश्वर व पदमपुरी आदि इलाकों में पांच सौ से अधिक पौधे लगाए थे जो अनुकूल जलवायु के कारण ये पौधे कुछ समय बाद ही फल देने लगे। अब तेजी से पहाड़ों में पांगर की खेती हो रही है जो किसानों के लिए फायदेमंद है। पांगर में कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए, सी, बी6 से भरपूर है।

बंजर जमीन पर भी आसानी से उग जाता है

पांगर की खासियत है कि यह बंजर जमीन पर भी उग जाता है। यह ड्राई फ्रूट के रूप में भी खाया जाता है। यह उत्तराखंड के अलावा कश्मीर, हिमांचल और असम के कुछ हिस्सों में भी उगाया जाता है।