हल्द्वानी: 25 सालों में कमजोर हो जाएगी आधी दुनिया की नजर

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Published By Shweta Kalakoti
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को आधार बनाकर एम्स आरपी सेंटर के चीफ प्रोफेसर डॉ. तितियाल ने किया दावा

हल्द्वानी, अमृत विचार। देश में आंखों से पीड़ित मरीजों की तादात बढ़ती जा रही है। दुनिया का हर तीसरा या छठा व्यक्ति ब्लाइंडनेस की बीमारी से पीड़ित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 आते-आते दुनिया में 50 प्रतिशत लोगों को चश्मा लग जायेगा।

यह दावा देश-विदेश में ख्यातिप्राप्त नेत्र रोग विशेषज्ञ और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस दिल्ली (एम्स) के आरपी सेंटर के चीफ प्रोफेसर पद्मश्री डॉ. जीवन सिंह तितियाल ने किया। शनिवार को हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज में डॉ. तितियाल ने नेत्रदान पखवाड़े से पहले पत्रकारों से रूबरू होते हुए बताया कि देश में हर साल आई ट्रांसप्लांट की एक लाख सर्जरी करने की जरूरत पड़ती है, लेकिन 30 से 50 हजार ही सर्जरी हो रही है।

कोविड काल में सर्जरी जीरो हो गई थी। अब धीरे-धीरे सर्जरी बढ़ रही है। पिछले वर्ष 30 से 40 हजार आई सर्जरी हुई हैं। हर साल करीब 30 हजार मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनको ग्राफिंग की जरूरत पड़ती है। करीब 10 से 12 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें तुरंत केराटोप्लास्टी की जरूरत पड़ती है, जिसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं आंख में चोट लगने के से भी बड़ी संख्या में लोग अंधे हो रहे हैं। 

 
समाज में बदलाव, नेत्रदान की संख्या बढ़ी

पद्मश्री डॉ. जीवन सिंह तितियाल ने बताया कि हर साल 25 अगस्त से 5 सितंबर तक नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। नेत्रदान को लेकर समाज में बहुत बदलाव आया है। नेत्रदान करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। लोगों में अंगदान और नेत्रदान को लेकर जो भ्रांतियां थी खत्म हो रही हैं। लोगों का रूझान बढ़ गया है। 

 

बच्चों को खेलकूद की ज्यादा जरूरत

डॉ. तितियाल ने कहा कि इलेक्ट्रानिक गजेट्स के कारण आज बच्चों की आंखें मायोपिया की चपेट में आ रही हैं। इसलिए बच्चों की खेलकूद की ज्यादा जरूरत है। स्कूल में बच्चों पर ज्यादा प्रेशर न पड़े, इसके लिए स्कूलों को एक घंटे की बाहरी गतिविधि कराने की हिदायत दी गई है। माता-पिता भी घर में बच्चों को बाहरी गतिविधि कराएं। इससे मायोपिया का खतरा कम होगा। 

 

उत्तराखंड में एयर एंबुलेंस की जरूरत

डॉ. तितियाल ने कहा कि सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले 7-8 सालों में काफी ध्यान दिया है। बजट में काफी मात्र में सुधार हुआ है। उत्तराखंड के दूरस्थ और सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टर और टैक्नीशियन नहीं है। जहां डॉक्टर-टैक्नीशियन हैं वह एक्यूमेंट नहीं है। उत्तराखंड को एक एयर एंबुलेंस की जरूरत है जो कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में काम कर सके। एम्स ऋषिकेश में हैलीपैड है, जिससे मरीजों को काफी सुविधा मिलेगी। ड्रोन सर्विस पहाड़ों में शुरू कराने का भी प्रयास हो रहे हैं।

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