बरेली: जिंदगी से करें प्यार ताकि कभी न आए खुदकुशी का ख्याल

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बरेली, अमृत विचार। पिछले कुछ साल से भारत ही नहीं दुनिया भर में खुदकुशी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इसकी रोकथाम को लेकर हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। लोग आर्थिक विकास की दौड़ में भाग रहे हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य में पिछड़ गए हैं। साल 2018 में …

बरेली, अमृत विचार। पिछले कुछ साल से भारत ही नहीं दुनिया भर में खुदकुशी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इसकी रोकथाम को लेकर हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। लोग आर्थिक विकास की दौड़ में भाग रहे हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य में पिछड़ गए हैं। साल 2018 में आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट ने चेतावनी देते हुए बताया था कि भारत में खुदकुशी किस तरह महामारी का रूप लेती जा रही है।

जहां लोग हर पल अपनी जान देने को उतारू रहते हैं विश्व के ऐसे शीर्ष 20 देशों में भारत भी शुमार है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 8 से 10 लाख लोग खुद अपनी जान दे देते हैं। कोरोना काल में ये आंकड़ा बढ़ा जरूर है, लेकिन पहले भी आत्महत्या की दर कोई कम नहीं थी। हर 40 सेकेंड पर एक शख्स कहीं न कहीं अपने हाथों से अपनी जिंदगी खत्म कर रहा था।

भारत में हालात और बिगड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्‍महत्‍या की है, यानि देश में हर रोज करीब 381 लोगों ने अपने हाथ से अपनी जिंदगी खत्म कर ली। ताजा आंकड़े वर्ष 2018 की तुलना में करीब 3.4 फीसद ज्‍यादा हैं जिसका सीधा मतलब ये है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में शहरों में आत्महत्या की दर 13.9 फीसद रही है, जो पूरे भारत में आत्महत्या की दर 10.4 फीसद से अधिक थी।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में आत्महत्या की दर 2.4 प्रति लाख जनसंख्या है लगभग एक लाख की आबादी पर लगभग दो लोग आत्महत्या करते हैं वहीं राष्ट्रीय दर 10.4 प्रति लाख जनसंख्या है। जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के डा. आशीष कुमार ने बताया कि अप्रैल से सितंबर तक 84 एक्टिव सुसाइडल केस आए। जिसमें मरीज आत्महत्या का कई बार प्रयास कर चुके थे । उन्होंने बताया कि बीते चार साल में डिप्रेशन के मरीजों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है।

समस्या है तो समाधान भी है
डॉ आशीष ने बताया कि जब व्यक्ति अवसादग्रस्त या तनाव में होता हैं तो वह चीजों को वर्तमान क्षण के परिप्रेक्ष्य में देखता है। एक सप्ताह अथवा एक माह के बाद यही चीजें भिन्न रूप में दिखाई देने लगती हैं। जो आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं वह मरना नहीं चाहते बल्कि अपनी पीड़ा को मारना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें अकेले उस स्थिति का सामना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने परिवार के किसी सदस्य या मित्र अथवा किसी सहयोगी से बात भर कर लेने पर उसका समाधान मिल सकता है। डा. आशीष के अनुसार आत्महत्या की प्रवृत्ति वालों की पहचान आसानी से नहीं की जा सकती।

मानसिक अवसाद के लक्षण
कुछ असमान्य लक्षण से पीड़ितों की मनोस्थिति के बारे में जाना जा सकता है, उन्हें ठीक से नींद नहीं आती, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है। वे अपने मनोभावों को व्यक्त करने में भ्रमित रहते हैं, उनकी खानपान की आदतों में अचानक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है या तो वे बहुत कम खाते हैं या बहुत ज़्यादा। आमतौर ऐसे लोग अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं, धीरे-धीरे वे लोगों से कटने लगते हैं।

कई बार वह खुद को नुक़सान भी पहुंचाते हैं। इस स्थिति में परिवार का योगदान महत्वपूर्ण हो जाता है, वे वस्तुस्थिति को समझकर उनका ख्याल रखें एवं जरूरत पड़ने पर उनका उपचार कराएं। जीवनशैली में बदलाव लाएं, ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें, खानपान को संतुलित करें, नियमित रूप से कुछ समय व्यायाम या योग करते हुए बिताएं। नकारात्मक सोच को बाहर का रास्ता दिखाएं। सबसे महत्वपूर्ण बात अकेले न रहें, परिवार और दोस्तों के संग रहें, सकारात्मक होकर कार्य करे। याद रखें, हर एक ज़िंदगी महत्वपूर्ण है इसे भरपूर जियें और तनाव से दूर रहें । अगर आप डिप्रेशन में हैं तो सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर 1075 पर पर सलाह ले सकते हैं। इसके अलावा डिस्ट्रिक्ट बरेली सुसाइड क्राइसिस हेल्पलाइन नंबर 72482158121 पर फोन करके डॉक्टर से सीधे सलाह ले सकते हैं।

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