बरेली: 630 करोड़ पर फिर गया पानी, बदायूं सिंचाई परियोजना को अब बंद मानिए

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Published By Vishal Singh
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बार-बार एस्टीमेट रिवाइज होने से टूट गया साढ़े तीन सौ गांवों के हजारों किसानों को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराने का सपना

महिपाल गंगवार/बरेली, अमृत विचार। बरेली और बदायूं के करीब साढ़े तीन सौ गांवों के किसानों को सिंचाई के लिए भरपूर पानी का सपना दिखाने वाली बदायूं सिंचाई परियोजना 630 करोड़ फूंकने के बाद बंद होने जैसी स्थिति में पहुंच गई है। वजह यह है कि 332 करोड़ के शुरुआती बजट वाली इस परियोजना का एस्टीमेट लगातार रिवाइज किया जाता रहा। आंवला विधायक धर्मपाल सिंह के सिंचाई मंत्री के कार्यकाल में सात गुना बढ़कर 21 सौ करोड़ तक पहुंचने के बाद यह परियोजना सफेद हाथी बन गई। अब चार साल से शासन में इस परियोजना का कोई नामलेवा ही नहीं है। अवशेष बजट के लिए काफी समय से शासन को कोई रिमाइंडर भी नहीं भेजा गया है।

बदायूं सिंचाई परियोजना पर 2011 में काम शुरू कराकर बसपा अगले ही साल सत्ता से बाहर हो गई। सपा सत्ता में आई तो बजट रिवाइज हुआ और 332 करोड़ की इस परियोजना की लागत 630 करोड़ पहुंच गई। सपा की सरकार ने 2015 में अवशेष 298 करोड़ का बजट अवमुक्त भी कर दिया। इस धनराशि से 311 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण हुआ और रामगंगा पर बैराज बनने के साथ उसके दोनों ओर पानी रोकने के लिए 12-12 किमी लंबाई के एफलक्स बनाए गए। 2018 में जब यह काम पूरा हुआ तो सपा को हटाकर भाजपा की सरकार आ चुकी थी और बजट की कमी से काम बंद हो चुका था। इसके बाद इस परियोजना की बागडोर तत्कालीन सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने संभाल ली।

बजट लगातार रिवाइज हो ही रहा था, धर्मपाल सिंह के कार्यकाल के बीच 2019 में यह 21 सौ करोड़ तक पहुंच गया। धर्मपाल सिंह इस परियोजना को अपना ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ बताते हुए लगातार काम पूरा कराने के दावे करते रहे लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। धर्मपाल को सिंचाई मंत्री पद से हटाए जाने के बाद यह परियोजना चर्चा में भी आनी बंद हो गई।

रिवाइज पर रिवाइज : धर्मपाल सिंह के कार्यकाल में 1470 करोड़ बढ़ी लागत
विभाग के मुताबिक जब परियोजना की शुरुआत हुई थी, तब भूमि का मुआवजा सरकारी कीमत पर दिया जाता था। 2015 में किसान चार गुने रेट की मांग करने लगे। इस बीच यह शासनादेश भी आ गया।। इसी कारण परियोजना की लागत 630 करोड़ पहुंच गई। 2017 में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन के बाद धर्मपाल सिंह सिंचाई मंत्री बने तो रिवाइज एस्टीमेट के जरिए यह परियोजना 630 करोड़ से 21 सौ करोड़ की लागत पर पहुंच गई। कई गुना लागत बढ़ने से ही इस परियोजना पर संकट के बादल छाने लगे।

मंजूरी मिलने के बाद भी नहीं मिला बजट
अब 1250 किसानों से करीब नौ सौ हेक्टेयर भूमि खरीदने के लिए करीब 1470 करोड़ रुपये की जरूरत है। 2019 में धर्मपाल सिंह के कार्यकाल में शासन की वित्त समिति ने पुनरीक्षित बजट स्वीकृत कर दिया था। इसके बाद मंत्रिमंडल की बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ से भी इसकी मंजूरी मिलने का दावा किया गया लेकिन फिर भी कुछ हुआ नहीं। धर्मपाल सिंह और सांसद धर्मेंद्र कश्यप ने इसके बाद इस मुद्दे पर अधिकारियों की घेराबंदी की मगर उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।

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