कासगंज वीरों की माटी: 1857  की क्रांति में क्रांतिकारियों ने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत

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Published By Om Parkash chaubey
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अंग्रेजों से जमकर लिया था लोहा और पीछे नहीं हटने दिए कदम, शहर में बारहद्वारी पर 25 मई को फूटी थी यह ज्वाला

कासगंज,अमृत विचार : 1857 की क्रांति में कासगंज के क्रांतिवीरों का उत्साह और जोश देखने लायक था। तमाम वीरों ने इस क्रांति में अपनी शहादत दी। जिले के कई क्षेत्र इन क्रांतिवीरों की यादें संजोए हुए हैं। उनमें ही शामिल है बारहद्वारी। जहां कई क्रांतिवीरों को सरेआम पेड़ों पर बांधकर हत्या कर दी गई। कुछ वीरों को फांसी पर लटका दिया गया। हम बता रहे हैं शहर के कुछ क्रांतिवीर की क्रांति की कहानी।

क्रांति के दौरान यह ज्वाला 25 मई अट्ठारह सौ सत्तावन को बारहद्वारी पर फूटी। जहां जबरदस्त संघर्ष हुआ था। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की फौज को चुनौती दी थी। ब्रिटिश हुकूमत के सामने क्रांतिकारी झुके नहीं। कई क्रांतिकारियों ने तमाम ब्रिटिश फौजियों को मौत के घाट उतारा, लेकिन कुछ क्रांतिकारी मारे भी गए।

26 मई को क्रांतिकारी शिवदान, रामनाथ तिवारी और चतुर्भुज वैश्य को फौजियों ने घेर लिया और बारहद्वारी स्थित पीपल और नीम के पेड़ पर लटकाकर संगीनों से मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा चतुर्भुज चौबे नाम के क्रांतिकारी के सिर को अंग्रेजों ने काटकर पीपल के पेड़ पर लटका दिया था। 1857 की क्रांति में अनेकों क्रांति के सपूतों ने जबरदस्त लोहा लिया और अपनी जान गंवाई, लेकिन क्रांति का जोश कभी कम नहीं हुआ। अंग्रेज कलेक्टरों को अपनी जान बचाने के लिए दूसरे क्षेत्रों में भागना पड़ता था।

दो साल पहले ही अस्तित्वविहीन हुआ है पीपल का वृक्ष: पीपल के जिस वृक्ष पर लटकाकर क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतारा गया। वह प्राचीन वृक्ष दो साल पहले ही अस्तित्वविहीन हुआ है। जिसने भी क्रांति की है गाथा सुनी है। वह इस पीपल के वृक्ष को जरूर नमन करता था। आज भी इस पुराने दृश्य को देखकर और किताबों में कहानियां पढ़कर क्रांतिवीरो के जज्बे को हर कोई नमन करता है।

जब झुके नहीं थे क्रांतिवीर: किताबों में लिखी क्रांति की गाथा के अनुसार जब ब्रिटिश फौजियों ने क्रांतिवीरों को बारहद्वारी पर घेर लिया था तब भी झुके नहीं थे और उन्होंने हंसते हंसते अपनी जान गवा दी। इन क्रांतिवीरों का जज्बा हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत है।

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