मुरादाबाद : आजादी आंदोलन में अमर सिंह को दो वर्ष की जेल, 100 रुपये जुर्माना
मेरा देश-- सत्याग्रह करने को गोबर के उपलों वाली बठिया में छिप गए थे आजादी के दीवाने, समय हाेते ही तिरंगा लेकर अंग्रेजों को ललकारा था, आजादी बाद 35 साल रहे प्रधान
निर्मल पांडेय, मुरादाबाद, अमृत विचार। भारत की आजादी में कांठ के अमर सिंह का भी बड़ा नाम है। इनका बचपन और जवानी आजादी की जंग में ही गुजरी। अमर सिंह चार भाइयों में तीसरे नंबर के थे। इनकी प्रेरणा से गांव और आसपास क्षेत्र के सैकड़ों युवा आजादी की लड़ाई में कूद थे। इसमें कुछ शहीद हो गए तो कुछ ने अंग्रेजों को भगाने के बाद आजादी का जश्न भी मनाया। भारत छोड़ो आंदोलन में आजादी के दीवाने अमर सिंह को दो वर्ष की जेल और 100 रुपये जुर्माना हुआ था।
आजादी के बाद वह मौढ़ी हजरतपुर के लगातार 35 साल तक निर्विरोध प्रधान रहे। जिला सहकारी डेवलेपमेंट फेडरेशन (डीसीडीएफ) के भी अध्यक्ष रहे। इस बीच बिनोबा भावे भूदान आंदोलन से प्रभावित होकर अमर सिंह ने किसानों से एक हजार बीघा कृषि भूमि ली और निर्धन परिवारों में दान की। आजादी के बाद उन्होंने अपने जीवन काल में कांठ व पट्टी मौढ़ा में इंटर कॉलेज स्थापित कराकर शिक्षा को भी विस्तार दिया। अमर सिंह मूलत: कांठ के खूंटखेड़ा गांव के रहने वाले थे।
उनका जन्म 1905 में हुआ था। फिर आजादी जंग लड़ी और उसके बाद आजाद भारत में जीवन जीकर कुल 97 साल की आयु पूरी कर मृत्यु को प्राप्त हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के उत्तराधिकारी देवेंद्र सिंह सिसौदिया अपने दादा का एक प्रसंग 1942 के दौर का सत्याग्रह आंदोलन का बताकर कहते हैं इस आंदोलन में जिसे शामिल होना होता था वह कुछ दिन पहले सत्याग्रह का फार्म भरकर वर्धा (महाराष्ट्र) में गांधी जी के आश्रम में भेजता था। उसमें सत्याग्रह करने की तिथि व समय नियत होने संग शर्त होती थी कि सत्याग्रह करने वाले को कार्यक्रम सफल होने से पुलिस पकड़ न सके।
इसलिए अज्ञातवास में रहना पड़ता था। चूंकि संबंधित व्यक्ति के फार्म को गांधी अंग्रेजी शासन को भेजते थे और सत्याग्रह सफल होने से पहले यदि पुलिस उसे पकड़ लेती थी तो उसका सत्याग्रह मान्य नहीं होता था। इसलिए उनके दादा अमर सिंह उपले की बठिया (बिठौरा) में सुबह चार बजे छप गए थे और पुलिस पूरे गांव में उन्हें खोजती रही। फिर जैसे ही सत्याग्रह का निर्धारित समय सुबह के 9.30 बजे कि उनके मित्र मुंशी रामस्वरूप सिंह ने पटाखा छोड़ दिया। पटाखा की आवाज सुनकर दादा बठिया से निकलकर हाथ में तिरंगा लेकर दौड़ते हुए ''''अंग्रेजों भारत छोड़ो, भारत तुम्हारे बाप का नहीं, भारत माता की जय'''' नारे लगाकर अपने अन्य साथियों में जोश भरा था। फिर उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था। आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का 27 सदस्यों का परिवार है।
उत्तराधिकारी ने बताया दर्द, किया शिकवा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर सिंह के पौत्र देवेंद्र सिंह सिसौदिया कहते हैं कि उनके बाबा ने आजादी की जंग लड़ी। आजाद भारत में आज उनके परिवार को कोई सरकारी लाभ भी नहीं मिल रहा है। अंग्रेज पुलिस ने उनके घर को तक कुर्क कर लिया था। बताया, उनके दो चाचा रघुवीर सिंह व जसवंत सिंह जीवित हैं। ये अक्सर बीमार रहते हैं, इनके इलाज के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। देवेंद्र सिंह ने बताया कि लोक सभा और विधान परिषद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवारों का भी कोटा निर्धारित हो, इसमें बड़े लोग सदस्य बनाकर भेजे जाते हैं तो क्या स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार का कोई व्यक्ति सदस्य नामित नहीं हो सकता है।
देवेंद्र सिंह ने बताया तीन साल पहले की बात है, चाचा की आंख का ऑपरेशन करना था तो एडीएम प्रशासन लक्ष्मी शंकर ने स्वास्थ्य विभाग के निदेशक को पांच रिमाइंडर लिखे लेकिन, वहां से कोई जवाब नहीं आया तो हमने प्राईवेट अस्पताल में 28 हजार रुपये खर्च कर चाचा की आंख का ऑपरेशन कराया है। परिवार में आज तक किसी को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली। उन्होंने खुद 1990-91 में लेखपाल पद के लिए आवेदन किया था। चयन हो गया था, फिर पता नहीं उनका नाम क्यों काट दिया। दादा ने कांठ के विधायक थे समर पाल सिंह, उनसे भी कहा था।
ये काम हुए
- कांठ से ठाकुरद्वारा संपर्क मार्ग का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर सिंह मार्ग हो गया है।
- मुरादाबाद में कांठ मार्ग से आशियाना प्रथम में जाने वाले रास्ते का नाम नामकरण भी अमर सिंह के नाम हुआ है।
- आशियाना प्रथम में पार्क का नाम भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर सिंह को गया है।
इन कार्यों का इंतजार
देवेंद्र सिंह ने कहा कि कांठ से ठाकुरद्वारा मार्ग पर खेत में समाधि स्थल है। पुस्तकालय बन जाए तो उसमें दादा की स्मृतियों को सहेजा जा सके, ताकि गांव के बच्चे आजादी और उनके दादा के बारे में जानें। कहा, कांठ से ठाकुरद्वारा मार्ग बहुत खराब है। आवागमन मुश्किल हो रहा है।
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