कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा- जलवायु परिवर्तन के मद्देजर किया गया है फसलों की नई किस्मों का विकास
नई दिल्ली। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जलवायु परिवर्तन को गंभीर चुनौती बताते हुए रविवार को कहा कि विश्व की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए फसलों की नई-नई किस्मों का विकास किया गया है, जो उत्पादन एवं उत्पादकता को सतत बनाए रखने में सक्षम हैं।
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तोमर ने कृषि अनुसंधान परिषद के 95वां स्थापना और प्रौद्योगिकी दिवस को संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन विश्व के समक्ष एक गंभीर चुनौती है, जिसका आधुनिक तकनीक से मुकाबला किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों और बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाना और खेती में जल की बचत करना एक प्रमुख चुनौती है। पिछले सात-आठ वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में तकनीक का उपयोग बढ़ा है और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में भी इसकी गति को बनाए रखा गया है।
कृषि मंत्री ने कहा कि वैज्ञानिक अथक परिश्रम कर प्रयोगशालाओं में नई-नई तकनीक का विकास करते हैं, जिसका खेतों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। इससे सबसे अधिक किसानों को फायदा होगा, जो उसका असली हकदार हैं। उन्होंने कहा कि एक समय फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग पर अधिक जोर दिया गया था। कुछ क्षेत्रों में किसानों ने रसायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया, जिसके कारण जमीन की उरवरा शक्ति घटने लगी है।
सरकार ने इस परिस्थिति को देखते हुए जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। इससे खेती की लागत कम होगी और जमीन की उरवरा शक्ति भी बढ़ेगी। सरकार ने खेती की इस पद्धति को मिशन मोड में रखा है और इसके लिए बजट में 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। तोमर ने कहा कि गोबर्धन और पीएम प्रणाम योजना पर भी कार्यवाही की जा रही है। इसके लिए राज्यों को आगे आने की जरूरत है।
जो राज्य सरायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम कर जैविक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देंगे, उन्हें केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद दी जाएगी। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों ने फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में भारी सुधार किया है, जिसके कारण विश्व में भारतीय खाद्यानों और बागवानी फसलों की मांग बढ़ी है। पिछले वर्षों 50 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों का निर्यात किया गया, जो एक रिकॉर्ड है।
उन्होंने कहा कि एक समय देश की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए फसलों के उत्पादन पर ध्यान था, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। देश में पर्याप्त मात्रा में खाद्यानों तथा दूसरी फसलों का भंडार है। कृषि के अलावा पशु पालन तथा मत्स्य पालन पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। पशु पालन 7.7 प्रतिशत और मत्स्य पालन 8.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इस रफ्तार को और अधिक तेज किया जाता है, तो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान बढ़ेगा और उससे तेजी से विकास होगा।
पशु पालन डेयरी एवं मत्स्य पालन मंत्री पुरुशोत्तम रुपाला ने कहा कि घुमंतू पशुपालकों पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। ये पशुपालक ऋतु के अनुसार अपना स्थान बदलते रहते हैं, जिसके कारण इसके बारे में सटीक सूचना होने का आभाव है। उन्होंने कहा कि पशुओं की कुछ नस्लें केवल घुमंतू किसानों के पास है, जिन पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक इन पर ध्यान दे तो पशुओं की नई नस्लों की पहचान की जा सकती है और फिर उनका विकास किया जा सकता है।
उन्होंने श्री अन्न (मोटे अनाजों) का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में विश्व में इसकी मांग बढ़ने वाली है, जिसे पूरा करने की व्यवस्था पहले करने की जरूरत है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने कहा कि देश में खाद्यानों का उत्पादन 33 करोड़ टन और बागवानी फसलों का उत्पादन 34 करोड़ टन से अधिक हो गया है। पिछले छह-सात साल से कृषि विकास दर 4.6 प्रतिशत पर बना हुआ है और फसलों का उत्पादन 2.04 टन प्रति हेक्टेयर पहुंच गया है।
देश प्रति व्यक्ति प्रति दिन दो किलो अनाज उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि एक अध्ययन में देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कम बर्षा होने से वर्ष 2020-21-22 और 2022-23 में फसलों का उत्पादन कम नहीं हुआ है। आयात की तुलना में खाद्य उत्पादों का निर्यात बढ़ा है तथा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम हुआ है। पाठक ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान शुरू कर दिया है, जिससे इसे विज्ञान की कसौटी पर कसा जा सके।
उन्होंने कहा कि भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रख कर निजी क्षेत्र का सहयोग लेना होगा और निर्यात के साथ-साथ खाद्य प्रशंस्करण उद्योग बढ़ावा देना होगा। इसमें किसान उत्पादक संगठन और स्वयं सहायता समूह की भी मदद लेनी होगी।
उन्होंने कहा कि अब फसलों का उत्पादन बढ़ाने की बजाए किसानों की आय बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि कि चुनौती पूर्व की चुनौतियों की तुलना में ज्यादा कठिन होगी, जिसे नवीनतम तकनीक और उपक्रमों की मदद से दूर किया जा सकता है।
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