Kanwar Yatra 2023 : कितने प्रकार की होती है कांवड़, जानिए इसका अर्थ?, पढ़ें... यात्रा के कठोर नियम
विकास यादव, बरेली, अमृत विचार। पवित्र श्रावण मास की आज से शुरुआत हो गई है। इस माह में भगवान भोलेनाथ को मनाने के लिए कोई चालीसा रखता है तो कोई महीने भर उनको जल अर्पित करता है। वहीं कुछ सालों से कांवड़ का चलन ज्यादा हो गया है। आपको बताते है कि कांवड़ को लेकर कुछ खास बातें।
इस यात्रा में एक कहावत है कि सभी कांवड़-कांवड़ कहते हैं, लेकिन यह बहुत कठोर है। इसमें लाने वाला बूढ़ा भी जवान से तेज और आगे निकल जाता है। कांवड़ के क्या नियम है और सही मायनों में कांवड़ कैसे लाई जाती है, इस पवित्र माह में आप को बताते हैं।
भगवान शिव को जल लाने से पहले के नियम
कांवड़ लाने से पहले जो व्यक्ति कांवड़ लेने जा रहा होता है, उसको अपने गुरु के सानिध्य में कांवड़ लाना चाहिए। कांवड़ लाने के लिए किसी सही महंत के साथ बेड़े(काबर लाने वालों का समूह) में उनके साथ जाना चाहिए। सबसे पहले यात्रा पर जाने से पहले भगवान भैरो या अपने देवी देवता की आराधना कर जाना चाहिए।
अपशब्द व अभद्र भाषा पर लगाया जाता है प्रतिबंध
जो व्यक्ति कांवड़ लेने जाना है। वह किसी से अभद्र व्यवहार नहीं कर सकता। किसी को अपशब्द नहीं कह सकता। उसे साधुओं जैसे विनम्र बनना पड़ता है। अगर बेड़े में कोई अपशब्द बोलता है तो उसको महन्त के द्वारा दंडित करने का अधिकार होता। खाने व प्रसाद को अमनिया, चप्पल के खड़ाऊ या चरण पादुका, चटाई को शीतलपाटि, नमक-मिर्च को रामरस, किसी को उसके नाम से नहीं बुला सकते। उसे भोले कहकर बुलाया जाता है। यहां तक कि जब आप शौच को जाते हैं तो उसे डोलडाल और पेशाब करने को लघुशंका कहते हैं। चलने के दौरान पैरों में पड़ने वाले छालों को बतासे कहते हैं। इसके साथ ही जो व्यक्ति कांवड़ लाता है, उसके घर पर भी खाने-पीने से लेकर अन्य कई परहेज रखे जाते हैं।
किसी भी जीव को नुकसान पहुँचाने पर होती है पावंदी
कांवड़ लाने के दौरान किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुँचाया जा सकता है। यहां तक कि रास्ते मे पड़ने वाले फल फूल को भी नहीं तोड़ सकते हैं। कांधे पर कांवड़ साधने के दौरान सिर पर गमछा आदि होना चाहिये।
तेल,आईना और साबुन पर रहता है प्रतिवंध
भगवान शिव को मानने के लिए कांवड़ लाने वालों को पूरी तरह सात्विक रहना पड़ता है। वह न तो अपने सिर में तेल लगा सकता है और न ही साबुन का प्रयोग कर सकता है। साथ ही वह अपने आप को आईने तक में भी नहीं देख सकता।
कितनी प्रकार होती हैं कांवड़-
बैकुंडी कांवड़
वैसे तो सबसे ज्यादा चलन बैकुंडी कांवड़ का है। इसको लाने वाला व्यक्ति कही भी साफ जगह पर कांवड़ को रखकर विश्राम कर सकता है। और उसके बाद वह कांवड़ साध कर अपने गतव्य पर जा सकता है।
खड़ेश्वरी कांवड़
इस कांवड़ को लाने वाला कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है। अगर उसे भोजन या लघुशंका आदि करता है तो वह कांवड़ को वह अपने सेवादार को दे सकता है।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ को डाक इसलिये बोलते हैं, इसको बगैर रुके लाना पड़ता है। कुछ लोग इसको लाने का समय भी बोल देते हैं। उस तय समय पर इसको लाया जाता है। जब तक महंत जल नहीं चढ़ाते तब तक कदम ताल करते रहना पड़ता है। महंत के जल चढ़ाने के बाद जल चढ़ाते हैं।
पालकी कांवड़
कुछ समय से पालकी कांवड़ का चलन भी चला है। इस कांवड़ को एक साथ कई लोग लेकर आते हैं। इसमें पालकी में जल रखा होता है।
कांवड़ को लेकर लोगों की आस्था बढ़ी है। अगर नियम की बात की जाए तो महंत के ना होने पर 50 फीसदी कांवड़ का नियम नहीं मानते। सबसे ज्यादा डाक लाने वाले नियमों को तोड़ते हैं---आदित्य सक्सेना, क़ाबरथी सेवा संघ अलखनाथ मंदिर
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