लखनऊ : इंदिरा सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की 48वीं बरसी पर लोकतंत्र रक्षकों ने दीप जलाकर जताया विरोध
अमृत विचार, लखनऊ । इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की 48वीं बरसी पर लोकतंत्र रक्षकों ने इमरजेंसी के खिलाफ दीप जलाकर अपना विरोध जताया। आपातकाल लोकतंत्र सेनानी समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर अपने राजनीतिक विरोधियों को मीसा और डीआईआर जैसे काले कानूनों के तहत जेलों में बंद कर दिया था। इंदिरा गांधी की सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित किया था।

उन्होंने कहा कि 25 जून 75 को आजाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गया था। आपातकाल में सरकार की तानाशाही के आगे न अपील थी, न वकील और न दलील। जिसने भी आवाज उठाई उसे जेल भेजकर अमानवीय यातनाएं दी गईं। आचार्य विनोवा भावे तक अपमानित किये गए। नतीजा यह हुआ कि लोकतंत्र बहाल हुआ और सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े।
के विक्रम राव ने कहा कि आजाद भारत में आपातकाल जैसे हालात स्वीकार्य नहीं हैं। यह फासीवादी मानसिकता की देन है। उन्होंने कहा कि जब तक शस्त्र और शोषण रहेगा तब तक आपातकाल की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। आपातकाल का विरोध करने वालों को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया। पंखों से उल्टा लटकाया गया। नाखूनों में कीलें ठोकी गईं। यातनाओं से जयप्रकाश नारायण को भी गुजरना पड़ा। उन्होंने कहा कि मोरारजी देसाई ने बयालीसवां संविधान संशोधन कर दिया। इसके बाद अब कोई भी तानाशाह आपातकाल जैसी हरकत नहीं कर पाएगा।
समाजवादी चिंतक दीपक मिश्र ने कहा कि लोकतंत्र लोकजीवन का धर्म है। लोकतंत्र पर आज भी किस्तों में आघात हो रहे हैं। आपातकाल से सबक लेते हुए हमें लोकतंत्र के सभी पक्षों को मजबूत बनाना होगा। ताकि दोबारा ऐसे हालात न बन पाएं। रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अपनी सरकार बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। उनके मनमाने शासन में क़ानून का राज खत्म हो गया था। ब्रिटिश हुकूमत से ज्यादा बर्बर यातनाएं दी जा रही थीं।
पूर्व मंत्री राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आपातकाल का विरोध करने वालों को मूत्र तक पिलाया गया। यातनाओं से न जाने कितने लोकतंत्र सेनानियों की जेल में मौत हो गई। शिवराम सिंह ने बताया कि आपातकाल में 19 महीनों में यह महसूस नहीं होता था कि ऐसा नृशंस राज अब कभी खत्म हो पाएगा। इमरजेंसी के खिलाफ पूरा देश एकजुट हो गया और सरकार को हार माननी पड़ी।
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