मत्स्य पालन क्षेत्र पर मछलियों की गैर पारंपरिक प्रजातियों, अरब सागर के बढ़ते तापमान का असर
तिरुवनंतपुरम। अरब प्रायद्वीप तथा भारतीय उप महाद्वीप के बीच बहते अरब सागर में मछलियों की ऐसी कुछ प्रजातियों मसलन जेली फिश, पफर फिश तथा लेदर जैकेट फिश की आमद हो रही है जो आमतौर पर यहां नहीं पाई जातीं और ऐसे में पारंपरिक रूप से पाई जाने वाली मछलियों पर संकट पैदा हो गया है।
समुद्र वैज्ञानिकों के अनुसार, हिंद महासागर के पश्चिमोत्तर हिस्से में स्थित सागर में तापमान बढ़ रहा है और मौसम से जुड़े अनेक घटनाक्रम जैसे चक्रवात आदि मछुआरा समुदाय की आजीविका पर असर डाल रहे हैं। समुद्र वैज्ञानिकों ने कहा कि अरब सागर का तापमान हमेशा 28 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब यह तापमान बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इन कारणों से कुछ गैर परंपरागत, गैर वाणिज्यिक प्रजातियां मत्स्य पालन का हिस्सा बन रही हैं।
केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ ग्रिनसन जॉर्ज ने एक न्यूज एजेंसी को बताया इन दिनों जेली फिश, पफर फिश और लेदर जैकेट फिश हमारे मछुआरों के जालों में फंस रही है। उन्होंने कहा कि इन प्रजातियों की मछलियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 2007 में दक्षिण पश्चिम तटों में जेली फिश की पकड़ एक टन भी नहीं थी लेकिन 2021 में यह बढ़कर 10 टन हो गई।
वर्ष 2007 में पफर फिश की भी पकड़ शून्य टन थी जो 2022 में बढ़कर 20 टन हो गई। लेदर जैकेट फिश वर्ष 2007 में आधा टन पकड़ी गई थीं जो 2022 में बढ़कर 25 टन से अधिक हो गई है। अरब सागर के तापमान में बढ़ोतरी से थर्मल सैलाइन परिसंचरण के तरीकों में बदलाव हुआ है और इसी कारण समुद्र में पारंपरिक मत्स्य विस्तार में भी बदलाव हुआ है। जॉर्ज कहते हैं, इनमें से कुछ प्रजातियों को पहले खतरनाक समझा जाता था लेकिन अब मछुआरे जानते हैं कि उन्होंने ऐसी चीज पकड़ी है जिसका निर्यात होता है। इसलिए वे इसे पकड़ते हैं और इनका निर्यात करते हैं।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अरब सागर से अधिक चक्रवात पैदा हो रहे हैं जिससे पर्यावरण में अधिक मात्रा में आर्द्रता पैदा हो रही है ,मछली पकड़ने के दिनों में कमी आ रही है और मॉनसून प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि ये सारे कारक भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी वित्तीय घाटा ला सकते हैं।
हालात और खराब होंगे क्योंकि तेज अल नीनो (समुद्री तापमान चक्र) बन रहा है और यह प्रशांत अथा अटलांटिक महासागरों को नहीं, बल्कि उत्तरी हिंद महासागर को प्रभावित कर रहा है। मत्स्य वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार भारतीय मत्स्य पालन से 1,37,716 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल हुआ था। इसलिए एक दिन कम मछली पकड़ने से सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) को 377.3 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।
वैश्विक तापमाान में वृद्धि की वजह से समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव, समुद्र के जल का तापमान बढ़ने से पानी के पीएच स्तर में बदलाव और पानी में अम्लीयता का बढ़ना तथा जल प्रदूषण जैसे कारकों की वजह से मछलियों की मृत्यु दर भी तेजी से बढ़ रही है। साथ ही इन कारणों से कोरल कॉलोनियां भी खत्म हो रही हैं जो मछलियों को पोषण प्रदान करने वाली रिहायश होती हैं। इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ रॉक्सी मैथ्यू कॉल कहते हैं हिन्द महाससागर, बंगाल की खाड़ी... लगभग हर जगह तापमान बढ़ रहा है जिसकी वजह से चक्रवात बनते हैं। लेकिन अरब सागर में ऐसा नहीं है। हालांकि बदलते मौसमी कारक अब अरब सागर पर भी असर डाल रहे हैं।
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