मुरादाबाद : जीवन नंबरों का खेल नहीं, रिजल्ट को स्वीकार करें

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Published By Priya
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पढ़ाई में औसत रहे जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह का बोर्ड परीक्षार्थियों को संदेश, पढ़ाई में मानसिक तनाव लेने की बजाय अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें

मुरादाबाद, अमृत विचार। जीवन नंबरों का खेल नहीं, परीक्षा के बाद जो रिजल्ट आए उसे स्वीकार करें। क्योंकि यह जीवन का पड़ाव है, अंत नहीं। कम नंबर से जिंदगी का लक्ष्य नहीं बदलता, अपनी पिछली कमियों को दूर कर मंजिल के लिए निरंतर आगे बढ़ें, यही जीवन का मूल मंत्र है।

यह संदेश जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह का है। वह कहते हैं कि हाईस्कूल, इंटरमीडिएट बोर्ड की परीक्षाएं हों या कोई अन्य प्रतियोगी प्रतिस्पर्धा इसमें लक्ष्य भेदने का जज्बा रखें, कोई जरूरी नहीं कि पहला तीर निशाने पर न लगा तो लक्ष्य हासिल नहीं होगा। फिर कोशिश करें और मंजिल पाएं। परीक्षाओं में नंबर महत्वपूर्ण है लेकिन इतना भी नहीं कि वह जिंदगी पर भारी पड़ जाए।

खुद के पढ़ाई का दौर याद करते हुए जिलाधिकारी ने बताया कि पढ़ाई में वह हमेशा औसत छात्र रहे। न बहुत मेधावी और न डिफॉल्टर। लेकिन जीवन में कुछ बनना है, इसके प्रति दृढ़ निश्चय रहा। एकेडमिक स्तर पर हाईस्कूल में 75 प्रतिशत कम मिले, लेकिन इस पर अफसोस करने की बजाय अपने पथ पर बढ़ते रहे। मेहनत कर जीवन में मिल रहे अनुभवों और गुरु की शिक्षा और परिवार के संबल से अपनी मंजिल को पाने में लगे रहे।

जिलाधिकारी ने कहा कि हर बच्चे में कुछ खास होता है। अभिभावक और शिक्षक उसे पहचानें और निखारने में बच्चों को प्रेरित करें। क्योंकि समाज में यदि सभी इंजीनियर, चिकित्सक या आईएएस ही बन जाएंगे तो बाकी कार्य कैसे होगा। चिकित्सक की सार्थकता तभी है जब मरीज हों। इसलिए किसी भी स्थिति में निराश हुए बिना आगे बढ़ें। खुद को आप ही बेहतर जानते हैं उस अनुरूप अपनी शिक्षा पर फोकस करें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीख लें विद्यार्थी
किसी भी माध्यम के बोर्ड परीक्षार्थियों के लिए जिलाधिकारी का संदेश है कि पढ़ाई में मानसिक तनाव लेने की बजाय अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें। वह कहते हैं कि कम नंबर या औसत परिणाम आने पर निराश होने की बजाय इसे एक अनुभव के रूप में लें। मानसिक दृढ़ता रखें। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हुए कहा कि वह ऑक्सफोर्ड के विद्यार्थी नहीं रहे लेकिन अपने अनुभव, ज्ञान, जानकारी और दक्षता से आज विश्व के सफल राजनेता हैं।

असफलता भी जीवन में देती है तजुर्बा
जिलाधिकारी का कहना है कि यदि अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने में कभी असफलता भी मिले तो निराश न हो, बल्कि चिंतन करें। यह एक तजुर्बा (अनुभव) है। जो बताता है कि पिछले प्रयास में कुछ कमी रह गई होगी। उसे पहचाने और मंजिल पाने के लिए आगे बढ़ें। यदि निश्चय दृढ़ होगा तो आपकी मंजिल और सफलता निश्चित हासिल होगी।

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