समीक्षा से पहले ही प्रगति के तहत सूचीबद्ध परियोजनाओं की बाधाओं को दूर कर लेते हैं राज्य: पीएम मोदी

समीक्षा से पहले ही प्रगति के तहत सूचीबद्ध परियोजनाओं की बाधाओं को दूर कर लेते हैं राज्य: पीएम मोदी

गांधीनगर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘प्रो-एक्टिव गवर्नेस’ और परियोजनाओं के समयबद्ध क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी आधारित मंच ‘प्रगति’ का इतना प्रभाव पड़ा है कि जब किसी परियोजना को इसके तहत समीक्षा के लिए सूचीबद्ध किया जाता है, तो राज्य सरकारें इसके रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। वह स्टेट वाइड अटेंशन ऑन ग्रीवन्सेज बाई एप्लीकेशन ऑफ टेक्नोलॉजी (स्वागत) के 20 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को डिजिटल तौर पर संबोधित कर रहे थे। 

मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिए केंद्र में प्रगति कार्यक्रम शुरू किया और यह अवधारणा स्वागत पहल पर आधारित थी। प्रगति बैठकों में केंद्र के अलावा राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले नौ साल में प्रौद्योगिकी आधारित मंच प्रगति ने देश के तेज गति से विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। 

उन्होंने प्रगति के तहत 16 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं की समीक्षा की। मोदी ने कहा, अब प्रगति ने ऐसा प्रभाव पैदा किया है कि जब किसी परियोजना को इसके तहत समीक्षा के लिए सूचीबद्ध किया जाता है, तो सभी राज्य उस परियोजना के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और जब मेरी समीक्षा की बात आती है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने दो दिन पहले ही परियोजना को मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि शासन केवल नियमों और विनियमों तक सीमित नहीं हो सकता है, इसे लोगों तक पहुंचने के लिए नवाचार और नए विचारों की आवश्यकता है। 

उन्होंने कहा, शासन प्राणहीन व्यवस्था नहीं है, ये जीवंत व्यवस्था होती है, संवेदनशील व्यवस्था होती है। यह लोगों की जिंदगियों से, सपनों से और संकल्पों से जुड़ी हुई एक प्रगतिशील व्यवस्था होती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2003 में उन्होंने जब ‘स्वागत’ की शुरूआत की थी तब उन्हें गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में ज्यादा समय नहीं हुआ था। उन्होंने कहा, कुर्सी मिलने के बाद मैंने मन में ही सोचा था कि मैं वैसा ही रहूंगा जैसा लोगों ने मुझे बनाया है, मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा। मैं जनता-जनार्दन के बीच रहूंगा, जनता-जनार्दन के लिए रहूंगा। इसी उद्देश्य से स्वागत का जन्म हुआ।

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