Shankaracharya Jayanti: कब है शंकराचार्य जयंती? 1200 साल पहले हुआ था जन्म, बनाए देश में चार धाम

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Published By Vishal Singh
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Shankaracharya Jayanti: आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुआ था। उन्होंने 8 साल की उम्र में सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इस साल 25 अप्रैल को आदि शंकराचार्य की जयंती है। शंकराचार्य एक महान आचार्य थे, जिन्होंने भारतीय दर्शन और तत्त्व शास्त्रों के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 

समाधि को लेकर कई तरह के मतभेद
माना जाता है कि 820 ईस्वी में सिर्फ 32 साल की उम्र में शंकराचार्य जी ने हिमालय क्षेत्र में समाधि ली थी। हालांकि शंकराचार्य जी के जन्म और समाधि लेने के साल को लेकर कई तरह के मतभेद भी हैं। उन्होंने भारत की यात्रा की और चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। जो कि आज के चार धाम है। शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम) की स्थापना की थी।

शंकराचार्य जयंती का इतिहास
हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य का जन्म लगभग 1200 साल पहले कोचीन से 5-6 मील दूर कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में जन्म हुआ था। वर्तमान में इसी कुल के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। इसके अलावा ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। आदि शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली बालक थे।

देश में सांस्कृतिक एकता
भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पुजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो रूप से एकता के सूत्र में बंध सके।

धर्म और संस्कृति की रक्षा
आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी। इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करनी होती है। 

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