सड़कों पर उदासीनता
उत्तर प्रदेश में जब से योगी सरकार आई है सरकार के एजेंडों में सड़कों को सुगम व गढ्ढा मुक्त करना प्रमुख रहा है। सरकार की ओर से सड़कों को गढ्ढा मुक्त करने के लिए डेड लाइन जारी की गई थी, लेकिन अभी भी प्रदेश की सड़कें पूरी तरह गढ्ढा मुक्त नहीं हो सकी हैं जिसका कारण पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की सुस्ती है।
इस सुस्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते वित्त वर्ष में पीडब्ल्यूडी विभाग को जारी बजट का प्रयोग न कर पाने की वजह से 8914 करोड़ रुपये सरेंडर करने पड़े। यह अब तक की सरेंडर की गई सबसे बड़ी राशि है जो कि कुल आबंटित बजट का 33 प्रतिशत है। इससे ज्ञात होता है कि विभाग के अधिकारी अपने सुस्त रवैये के चलते कैसे सरकार द्वारा संचालित सड़क परियोजना को पलीता लगाने का कार्य कर रहें हैं।
गौरतलब है कि बीते वित्त वर्ष 2022-23 के मूल बजट में 24590 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था जिसमें 18627 करोड़ रुपये सड़कों के लिए, 3049 करोड़ रुपये सेतुओं के लिए और 277 करोड़ रुपये भवन मद में व्यवस्था की गई। यही नहीं स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत विभिन्न कामों के लिए 2134 करोड़ रुपये दिए गए। दिसंबर-2022 तक बजट खर्च करने की रफ्तार बेहद ही धीमी रही, जबकि बड़ी संख्या में सड़कों की हालत खस्ता थी। इसके बावजूद विभाग द्वारा अनुपूरक बजट के तहत और अधिक राशि की मांग की गई जिसके तहत दिसंबर में आए अनुपूरक बजट में विभाग को 2550 करोड़ रुपये और दिए गए।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार ही हुआ हो। वित्त वर्ष 2021-22 में भी विभाग द्वारा शासन से जारी बजट का बड़ा हिस्सा सरेंडर करना पड़ा था। जो कि कुल आबंटित बजट का 29.63 प्रतिशत था। इस स्थिति को देखते हुए पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में शासन ने निर्देश दिए थे कि समय से स्वीकृतियां जारी हों और बजट का पूर्ण उपयोग मार्गों को बनाने के लिए किया जाए। ऐसा न होने की स्थिति में संबंधित अधिशासी और मुख्य अभियंताओं के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसके बावजूद सरेंडर राशि घटने के बजाय बढ़ गई। अधिकारियों का यह मनमाना रवैया प्रदेश के विकास के लिए ठीक नहीं है। हालांकि सरकार की ओर से समय-समय पर चेतावनियां भी दी गईं लेकिन सब बेअसर रहीं। अब शासन जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, लेकिन खानापूर्ति करने के बजाय ऐसी कठोर कार्रवाई की जाए जो कि एक नजीर बन सके।
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