यूरोपीय संघ के कार्बन कर से मुकाबले के लिए प्रावधान करे भारतः GTRI
नई दिल्ली। आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई ने यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन कर की चुनौती से निपटने के लिए सरकार से एक जवाबी और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) मानकों के अनुरूप व्यवस्था बनाने को कहा है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने रविवार को ईयू के कार्बन कर के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार और भारतीय उद्योग जगत को यह सुझाव दिया। यह उसकी 13 सूत्री कार्ययोजना का हिस्सा है। जीटीआरआई ने यह सुझाव भी दिया है कि सरकार कार्बन कर का मु्द्दा हल किए बगैर यूरोपीय संघ के साथ किसी भी तरह का मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) न करे।
यूरोपीय संघ ने इस साल एक अक्टूबर से कार्बन सीमा समायोजन व्यवस्था (सीबीएएम) लागू करने का फैसला किया है। इसके बाद एक जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ के भीतर आने वाले उत्पादों पर 20-35 प्रतिशत की दर से कर लगने लगेगा। इस तरह जनवरी, 2026 से ईयू इ्स्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन एवं बिजली पर कार्बन कर लगाने लगेगा। इसका भारतीय निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वर्ष 2022 में ही भारत ने 8.2 अरब डॉलर मूल्य के इस्पात, एल्युमिनियम एवं लौह उत्पाद यूरोपीय संघ को निर्यात किए थे।
जीटीआरआई के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, जब अमेरिका ने भारत से इ्स्पात एवं एल्युमिनियम के आयात पर शुल्क लगाया था तो भारत ने भी अमेरिका से इन उत्पादों के आयात पर उतना ही कर लगा दिया था। भारत को यूरोपीय संघ की कार्बन कर व्यवस्था से मुकाबले के लिए उसी तरह का कदम उठाने के बारे में सोचना होगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अधिक कार्बन कर होने से शून्य शुल्क वाले एफटीए निरर्थक हो जाएंगे। इस वजह से भारत को यूरोपीय संघ के साथ अपने एफटीए को अंतिम रूप देते समय खास ध्यान रखने की जरूरत होगी।
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