Salim Durani Death : काबुल में जन्म, पाकिस्तान में परवरिश... दर्शकों की मांग पर इंडिया के लिए छक्के जड़ते थे सलीम दुर्रानी

88 वर्ष के दुर्रानी ने रविवार को आखिरी सांस ली और उनके साथ ही मानों एक युग का अंत हो गया

Salim Durani Death : काबुल में जन्म, पाकिस्तान में परवरिश... दर्शकों की मांग पर इंडिया के लिए छक्के जड़ते थे सलीम दुर्रानी

नई दिल्ली। काबुल में जन्में और पाकिस्तान में परवरिश लेकिन भारत के लिए क्रिकेट खेलने वाले सलीम दुर्रानी अपने अंदाज, शख्सियत और दर्शकों की मांग पर छक्के लगाने के हुनर के कारण भारतीय क्रिकेट के शहजादे सलीम के रूप में हमेशा याद किये जायेंगे। साठ और सत्तर के दशक में भारतीय क्रिकेट की शैशवस्था के साक्षी रहे हर क्रिकेटप्रेमी को याद होगा कि कैसे मैदान में दर्शक दुर्रानी से छक्के की मांग करते थे और वह कभी उनका दिल नहीं तोड़ते थे।

ईडन गार्डंस पर करीब 90000 दर्शक पूरा गला फाड़कर एक साथ 'सिक्सर सिक्सर' चिल्लाते थे और यह महान खिलाड़ी अगली गेंद को लांग आन या डीप मिडविकेट सीमारेखा के पास भेज देता था। सुनील गावस्कर ने एक बार लिखा था कि अगर सलीम दुर्रानी आत्मकथा लिखेंगे तो उसका शीर्षक होगा, 'आस्क फोर अ सिक्स।' हरदिलअजीज दुर्रानी के दबदबे का आकलन 1960 से 1973 के बीच खेले गए 29 टेस्ट से नहीं हो सकता और ना ही 1200 रन या 75 विकेट से जो उन्होंने लिये। कैरियर में एकमात्र शतक, तीन बार पारी के पांच विकेट और 25 का औसत पूरी दास्तान नहीं कहता। 

88 वर्ष के दुर्रानी ने रविवार को आखिरी सांस ली और उनके साथ ही मानों एक युग का अंत हो गया। अपने अंदाज और दिल जीतने के फन के कारण वह वाकई शहजादे सलीम थे। उस समय टेस्ट मैच खेलने पर 300 रूपये मिलते थे लेकिन दुर्रानी सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन और खेल से मुहब्बत के लिये खेलते थे । वेस्टइंडीज के 1971 के दौरे पर अपनी पदार्पण श्रृंखला में 774 रन बनाकर गावस्कर ने भारतीय टीम को कैरेबियाई सरजमीं पर टेस्ट श्रृंखला में पहली जीत दिलाई । लेकिन पोर्ट आफ स्पेन टेस्ट में अगर दुर्रानी एक ही स्पैल में क्लाइव लॉयड और गैरी सोबर्स का विकेट नहीं लेते तो यह संभव नहीं होत। 

उसके बाद इंग्लैंड दौरे पर उन्हें टीम में जगह नहीं मिली क्योंकि भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर हावी मुंबई गुट को लगा कि वह इंग्लैंड के हालात में खेल नहीं सकेंगे। उन्हें ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड दौरै के लिये नहीं चुना जाना समझ से परे है । इंग्लैंड के खिलाफ ईडन गार्डंस पर अर्धशतक जमाने के बाद कानपुर टेस्ट में उन्हें नहीं चुना गया । इसका असर ऐसा था कि लोगों ने पोस्टर दिखा दिए, नो सलीम , नो टेस्ट। अफगानिस्तान टीम ने 2018 में जब बेंगलुरू में पहला टेस्ट खेला तो अफगान मूल के पठान दुर्रानी को भारतीय बोर्ड ने सम्मानित किया । अपने बिंदासपन , बेतकल्लुफी और जिंदादिली के लिये लोकप्रिय रहे दुर्रानी को खुद इसका अहसास नहीं था कि वह कितने बड़े खिलाड़ी हैं और यही खासियत उन्हें महान बनाती है।

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