राहुल ही नहीं, दादी इंदिरा और मां सोनिया गांधी भी लोकसभा सदस्यता से धो बैठे थे हाथ
नई दिल्ली। 'मोदी सरनेम' बयान से जुड़े मानहानि केस में सूरत (गुजरात) की एक अदालत द्वारा 2 साल की सज़ा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया है। इस मामले में राहुल को ज़मानत मिल गई थी। राहुल के पास इस सज़ा के खिलाफ अपील के लिए 30 दिन हैं। अगला सवाल है कि क्या वायनाड में सालभर के लिए सांसदी के लिए उपचुनाव होगा? इसका जवाब तो आगे की प्रक्रियाओं से मिलेगा, लेकिन इस वाकये ने याद दिला दिया है कि गांधी परिवार के साथ यह पहला मामला नहीं है. बल्कि राहुल की मां (सोनिया गांधी) और दादी (पूर्व पीएम इंदिरा गांधी) भी एक एक बार अपनी लोकसभा सदस्यता से हाथ धो बैठे हैं।
दरअसल,1977 में जनता पार्टी सरकार तब पूरा देश हैरान रह गया था जब लोकसभा में एक प्रस्ताव पास करके पूर्व प्रधानमंत्री की सदस्यता छीन ली गई। इसके बाद इंदिरा गांधी के पक्ष देशभर में जो सहानुभूति लहर देखने को मिली, उससे जनता पार्टी सरकार घबरा गई। संसद में ये आवाज उठने लगी कि इंदिरा गांधी के साथ गलत किया गया है। लिहाजा एक ही महीने बाद लोकसभा में फिर एक प्रस्ताव लाया गया, जिसे पास करके उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई। ये सब कैसे हुआ और देश में क्या प्रतिक्रिया हुआ ये जानना चाहिए। दरअसल 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। लोगों के मूलअधिकार छीन लिए गए। विपक्षी दल के नेताओं से जेल भरने लगी। अतिक्रमण हटाने और नसंबदी के नाम पर जो अभियान चलाया गया, उससे जनता भी क्षुब्ध हो गई, लिहाजा जब इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल हटाकर चुनाव कराया तो वह बुरी तरह हार गईं।
1977 के मार्च महीने में भारतीय लोकतंत्र ने ऐसी करवट ली, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इंदिरा गांधी और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। इंदिरा और संजय को अमेठी और रायबरेली से अपने चुनाव क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा को राजनारायण ने हराया। ये पहला और आखिरी मौका था जब इंदिरा चुनाव में हारीं। इंदिरा गांधी और उनका परिवार काफी अलग थलग पड़ गया। बड़े पैमाने पर वफादार माने जाने वाले कांग्रेसियों ने उनका साथ छोड़ दिया। इंदिरा गांधी हार के बाद दो महिने तक सदमे की स्थिति में रहीं। सागरिका घोष की किताब इंदिरा कहती है कि वह अचानक सरकारी सुविधाओं के सुरक्षा घेरे से महरूम हो गई, जिसकी वह तीन दशक से आदी थीं। उनसे मिलने जुलने वाले न के बराबर हो चुके थे।
ये वाकया 1978 में हुआ। एक साल पहले जनता पार्टी सरकार एक रात के लिए इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर चुकी थी और इससे इंदिरा देशभर में गजब की सहानुभूति मिली थी। दरअसल जनता पार्टी सरकार उन्हें गिरफ्तार करके हरियाणा जेल में रखना चाहती थी लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई। उन्हें बीच रास्ते से दिल्ली लाना पड़ा। अगले दिन अदालत ने उन्हें रिहा करने का हुक्म सुनाया। दरअसल ये काफी नाटकीय गिरफ्तारी थी। इंदिरा जगह जगह के दौरे कर रहीं थीं और उन्हें जनसमर्थन मिलने लगा था। अक्टूबर 1977 को इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ जो मुकदमा दायर किया जाना था, उसका ताल्लुक चुनावों में उनके द्वारा सरकारी जीपों के दुरूपयोग से था।
इंदिरा ने पुलिस को 05 घंटे इंतजार कराया। फिर वह बाहर आईं। उन्हें बखूबी पता था कि इस मौके का कैसे फायदा उठाना है। प्रेस के कैमरे फटाफट उनकी तस्वीरें लेने लगे। भारी भीड़ उन्हें माला पहनाने लगी। वह पुलिस की जीप पर बैठीं। हरियाणा की सीमा पर जब काफिले को रेल फाटक के कारण रुकना पड़ा तो इंदिरा के वकीलों ने पुलिस से बहस शुरू कर दी कि वो उन्हें बगैर वारंट दिल्ली से बाहर नहीं ले जा सकते। आखिरकार पुलिस को वापस दिल्ली लौटना पड़ा। उन्हें हवालात ले गए। अगले दिन मजिस्ट्रेट ने उनके खिलाफ सभी आरोपों को बेबुनियाद ठहराते हुए उन्हें रिहा कर दिया। इसका उन्हें खूब प्रचार मिला।
उसके बाद 1978 में वह कर्नाटक के चिकमगलूर से 60,000 से ज्यादा मतों उपचुनावों में जीतकर लोकसभा में पहुंचीं। उनका लोकसभा में आना मोरारजी देसाई के लिए बड़ा झटका था, जो उन्हें सख्त नापसंद करते थे। उस चुनाव से पहले उन्होंने जनता से आपातकाल के लिए सार्वजनिक माफी मांगने का बयान दिया।इसी मौके पर ये नाराज उछला,एक शेरनी, सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर। इससे पहले किस्सा कुर्सी का फिल्म के मामले में संजय की जमानत रद्द करते हुए उन्हें एक महीने के लिए जेल भेज दिया गया था। ये मामला किस्सा कुर्सी का फिल्म के प्रिंट को नष्ट करने को लेकर था। कानूनी फंदा इंदिरा के चारों ओर भी कसने लगा था। ऐसे मौके पर चिकमंगलूर की जीत उनके लिए संजीवनी साबित हुई।
जब वह लोकसभा में पहुंचीं तो 18 नवंबर को उनके खिलाफ अपने कार्यकाल में सरकारी अफसरों का अपमान करने और पद के दुरूपयोग के मामले में खुद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव पास हो गया। हालांकि इस पर 07 दिनों तक बहस चली। प्रस्ताव के पास होने पर इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार समिति बनी, जिसे इंदिरा के खिलाफ पद के दुरूपयोग मामले सहित कई आरोपों पर जांच करके एक महीने में रिपोर्ट देनी थी। हालांकि मोरारजी देसाई के बहुत से सहयोगी ऐसा नहीं चाहते थे, वो देख चुके थे कि देश में फिर इंदिरा गांधी की लोकप्रियता तो बढ़ ही रही है साथ ही उन्हें सहानुभूति भी मिलने लगी है।तब इंदिरा गांधी 61 साल की थीं।
विशेषाधिकार समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि इंदिरा के खिलाफ लगे आरोप सच हैं, उन्होंने विशेषाधिकारों का हनन किया है और सदन की अवमानना भी की, लिहाजा उन्हें संसद से निष्कासित किया जाता है और गिरफ्तार करके तिहाड़ भेजा जाता है।तब इंदिरा ने कहा, उन्हें ये सजा केस के तथ्यों के आधार पर नहीं बल्कि पुरानी दुश्मनी निकालने के खातिर दी गई है। मोरारजी देसाई ने कहा कि इंदिरा के खिलाफ आरोप गंभीर थे लिहाजा उन्हें जेल जाना ही होगा और सदस्य रहने का तो उन्हें हक ही नहीं।
इसके बाद दो बातें हुईं। इंदिरा गांधी ने कहा कि वह फिर चुनाव लड़कर और जीतकर लोकसभा में पहुंचेंगी। हालांकि जनता पार्टी सरकार अपने अंतर्विरोधों से खुद टूटने और कमजोर होने लगी। 03 साल में ही ये सरकार गिर गई। 1980 में देश ने फिर मध्यावधि चुनाव का मुंह देखा। अब तक जनता ने आपातकाल से इंदिरा को लगता है कि माफ कर दिया था। वह प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करके फिर लोकसभा में पहुंची। सरकार बनाई और प्रधानमंत्री भी बनीं।
जब सोनिया गांधी की गई थी सदस्यता
साल 2006 में जब संसद में 'लाभ के पद' का मामला जोर-शोर से उठा है. देश में यूपीए का शासन है और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस आरोप से घिरी हुई हैं। दरअसल सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। इसके साथ ही वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे लाभ का पद करार दिया गया था। इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ा था।
हालांकि इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी दोनों ने ही जो भी राजनीतिक दांव-पेच सहे और उठा पटक देखे, उसके बाद उन्होंने दोबारा मजबूती से वापसी की है। गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं राहुल गांधी, जिनकी सदस्यता गई है। इससे पहले वह अमेठी की सत्ता गंवा चुके हैं और अब वायनाड भी हाथ से निकल चुका है। देखें आगे क्या होता है।
