अर्थव्यवस्था के मोर्च पर

Amrit Vichar Network
Published By Vishal Singh
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सरकार ने मंगलवार को चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के जो आंकड़े जारी किए हैं वे भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति के परिप्रेक्ष्य में अच्छी खबर नहीं है। आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4 प्रतिशत पर जा पहुंची है।

आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर की तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था की गति पिछली तिमाही के मुकाबले धीमी रही। हालांकि रिजर्व बैंक का अनुमान यही था। जीडीपी से किसी देश की आर्थिक सेहत का पता चलता है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों  के अनुसार मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से जीडीपी में गिरावट आई है।

इससे पिछले वित्त वर्ष 2021-22 की समान तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था 11.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी। वहीं, चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही थी। एनएसओ ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इसके अलावा एनएसओ ने बीते वित्त वर्ष 2021-22 की वृद्धि दर को 8.7 प्रतिशत से संशोधित कर 9.1 प्रतिशत कर दिया है।

इस तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 1.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 1.3 प्रतिशत रही थी। कुछ विश्लेषक विनिर्माण क्षेत्र में आई गिरावट का प्रमुख कारण उपभोक्ता मांग में कमी को मान रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में एशियाई विकास बैंक  ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत विस्तार का अनुमान लगाया है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  ने ग्रोथ के 6.8 प्रतिशत रहने की बात कही है।

गौरतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति उसके समाज की स्थिति का प्रतिबिंब होती है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, किसी भी अर्थव्यवस्था का कामकाज उसमें मौजूद लोगों और संस्थानों के बीच आदान-प्रदान तथा सामाजिक संबंधों का संयुक्त परिणाम होता है। आर्थिक स्थिति के लिए मात्र वैश्विक कारकों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

आंकड़े आने के बाद कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सर्वप्रथम सरकार को यह सोचना बंद करना होगा कि सब कुछ नियंत्रण में है। क्षेत्र विशेष में हस्तक्षेप का दृष्टिकोण कुछ हद तक देश की आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकता है, परंतु स्थिर और टिकाऊ विकास के लिए अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने वाले गहन संरचनात्मक मुद्दों पर केंद्रित रहना होगा।