बक्सर की बेटी को रिजर्व बैंक ने दिया कविता का प्रथम पुरस्कार 

बक्सर की बेटी को रिजर्व बैंक ने दिया कविता का प्रथम पुरस्कार 

बक्सर। बेटी पढ़ाओ , बेटी बचाओ का नारा जब परवान चढ़ा है तो कई बेटियां पढ़ लिखकर सार्वजनिक जीवन में संघर्ष करते हुए कविता लेखन भी कर रही है। ऐसे में ही बिहार के बक्सर जिले के सिमरी प्रखंड के नगपुरा गांव निवासी योगेंद्र चौबे की इकलौती बेटी सोनी चौबे जो केनरा बैंक की पटना स्थित वरिष्ठ अधिकारी है को उनके कविता को भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रथम पुरस्कार से नवाजा है।

जिस कविता के लिए साेनी को प्रथम पुरस्कार दिया गया वह इसप्रकार है: हाँ मैं, स्त्री हूँ, हाँ मैं स्त्री हूं, सभ्यता की उत्थान की नायिका, हर नायक की जननी हूँ मैं लिखने वाली सोनी चौबे पास के बड़का सिंघनपुरा की स्व कृष्णदेव ओझा एवं स्व शान्ति ओझा की छोटी बहू है और राकेश कुमार ओझा की पत्नी है।

दो बच्चों आदित्य और अद्रित की माँ, श्रीमती चौबे ,बैंक की व्यस्त सेवाओं में भी लेखन आदि करती रहती हैं। स्थानीय सरस्वती विद्या मंदिर की छात्रा रही सोनी चौबे बैंक की अधिकारी बन बेटी बचाओ बेटी पढाओ की नारा बुलंद करते हुए अपनी माँ बाप की इकलौती संतान है।

आरंभ में ही माँ प्रमिला चौबे का साया इस जीवन से उठ जाने के बाद वह कई संघर्षों विषम परिस्थितियों से जूझती हुई लेखन कर्म कर रही है जो एक मिसाल है। वह बताती है कि मध्यमवर्गीय परिवारों में अभी भी महिला हेय दृष्टि से देखी जाती हैं और उसके बाद ड्योढ़ी के बाहर निकलते ही लड़कियों पर समस्याओं और संकटों का पहाड़ टूट जाता हैं।

कोरोना के बाद यह भी साबित हुआ कि बेटियां औऱ मां परिवार की थाती है। अब समय आ गया है कि बेटी अब पढ़े और लिखे भी। संवेदनशील बनकर समाज के हर नरपिशाचों से लड़े चाहे वह घर में ही क्यों न हो। उन्होंने समाज और सरकार से भी लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण बदलने की जरूरत बताती हैं। सम्प्रति पटना में रहकर केनरा बैंक और कविता दोनों की सेवा कर रही हैं । अभी हाल ही में राजधानी पटना में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (बैंक और बीमा) पटना की ओर से रिजर्व बैंक ने एक समारोह में उसे कविता के लिए प्रथम पुरस्कार दिया है।

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