Kalyan Singh Jayanti: संघर्षों से भरा रहा कल्याण सिंह का जीवन, राममंदिर आंदोलन के थे अगुआ 

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Published By Jagat Mishra
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लखनऊ, अमृत विचार। स्वर्गीय कल्याण सिंह केवल अलीगढ़ के ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश के बाबूजी थे। उन्होंने कई बार मंच से कहा कि पूरा प्रदेश मेरे लिए अलीगढ़ है। दो बार प्रदेश के सीएम रहे कल्याण सिंह की आज जयंती है। कल्याण सिंह को हिंदुत्व का असली चेहरा भी मन जाता है। संघ से जुड़े कल्याण सिंह राममंदिर आंदोलन के अगुआ रहे। उनका जीवन बेहद संघर्ष भरा रहा। उन्हें करीब से जानने वालों के अनुसार कल्याण सिंह कई बार अपने ही सरकार के खिलाफ तक हो जाते थे। उन्होंने पद पर बने रहने के लिए कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इसी का परिणाम रहा कि अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने से इंकार कर दिया। 

विवादित ढांचे के विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद को ठोकर मार दी और कहा कि राम मंदिर के लिए एक नहीं सैकड़ों सत्ता कुर्बान हैं। हालांकि अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में विराजमान रामलला के दर्शन करने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई। 89 वर्ष की उम्र में 21 अगस्त 2021 की देर शाम बीमारी के चलते उनका लखनऊ में देहांत हो गया।

स्वर्गीय कल्याण सिंह अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव मढ़ौली गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे। बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते थे। उच्च शिक्षा हासिल कर अतरौली के एक इंटर कॉलेज में अध्यापक बने। 1967 में पहली बार अतरौली से विधायक बने और 1980 तक लगातार जीते। आपताकाल में 21 महीने तक अलीगढ़ व बनारस की जेल में रहे। जनसंघ से भाजपा के गठन के बाद प्रदेश संगठन महामंत्री बनाए गए। इस दौरान गांव-गांव घूमकर भाजपा की जड़ें मजबूत कीं। अब विशाल वट वृक्ष बन चुकी इस पार्टी को कल्याण सिंह व उनके सहयोगियों ने ही शुरुआती दिनों में सींचा था। जब देश में भाजपा का उभार हुआ तो 1991 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वे मुख्यमंत्री बने। 

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